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बूढ़ापे का सहारा बेटी या बेटा


*हम सभी लोग मेन हॉल में बैठे-बैठे चर्चाएं कर रहे थे तभी मेरी बहन ने मुझसे एक प्रश्न पूछा कि "भैया! यह बताओ आदमी के बुढ़ापे का सहारा उसकी बेटी होती है या उसका बेटा?*

*मैंने कहा- "बहन! यह प्रश्न ना करो तो ही अच्छा है। क्योंकि इससे कोई तो खुश होगा किसी को दुख होगा।*

*तो अन्य सभी लोग जिद करने लगे नहीं नहीं यह बात तो बतानी ही पड़ेगी वह भी विस्तार से...*

मैने कहा तो फिर सुनो... *बुढापे का सहारा बेटा या बेटी नहीं "बहू" होती है ।*

जैसा कि लोगों से अक्सर सुनते आये हैं कि बेटा या बेटी बुढ़ापे की लाठी होती है इसलिये लोग अपने जीवन मे एक *बेटा एवं बेटी* की कामना ज़रूर रखते हैं ताकि बुढ़ापा अच्छे से कटे।

ये बात सच भी है क्योंकि बेटा ही घर में बहु लाता है। बहू के आ जाने के बाद एक बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे पर डाल देता है।
और फिर बहू बन जाती है अपने बूढ़े सास-ससुर की बुढ़ापे की लाठी ।

जी हाँ! मेरा तो यही मानना है वो बहू ही होती है जिसके सहारे बूढ़े सास-ससुर अपना जीवन अच्छे से व्यतीत करते हैं।

*एक बहु को अपने सास-ससुर की पूरी दिनचर्या मालूम होती है।*
कौन कब और कैसी चाय पीते है , क्या खाना बनाना है , शाम के नाश्ता में क्या देना है, रात को हर हालत में 9 बजे से पहले खाना बनाना है ।
अगर सास-ससुर बीमार पड़ जाएं तो पूरे मन या बेमन से बहू ही देखभाल करती है।

अगर एक दिन के लिये बहू बीमार पड़ जाए या फिर कहीं चली जाए , तो पूरे घर की धुरी हिल जाती है । परंतु यदि बेटा 15 दिन की यात्रा पर भी चला जाये तो भी बहू के भरोसे घर सुचारू रूप से चलता रहता है ।

बिना बहू के सास-ससुर को ऐसा लगता है जैसा उनकी लाठी ही किसी ने छीन ली हो। वे चाय नाश्ता से लेकर खाना के लिये छटपटा जाएंगे । कोई और पूछने वाला उनके पास नही होता ।

क्योंकि बेटे के पास समय नही है और अगर बेटे को समय मिल भी जाये तो वो कुछ नही कर पायेगा क्योंकि उसे ये मालूम ही नही है कि माँ-बाबूजी को सुबह से रात तक क्या क्या देना है ? क्योंकि बेटे के चंद सवाल हैं और उसकी ज़िम्मेदारी खत्म...

जैसे "माँ-बाबूजी ने खाना खा लिया?" "चाय पी लिये? "नाश्ता कर लिये?" लेकिन कभी भी ये जानने की कोशिश नही करते कि वे क्या खाते हैं? कैसी चाय पीते हैं, ये लगभग सभी घरों की कहानी है ।
मैंने तो अधिकतर ऐसी बहुएं देखी हैं जो अपनी सास की बीमारी में तन मन से सेवा करती हैं.. *इसलिये मेरा मानना है कि बहू ही होती है बुढ़ापे की असली लाठी*।

लेकिन एक बात और सच है और सास ससुर को भी "मेरा राजा बेटा!" "मेरी रानी बेटी!" की रट छोड़ "मेरी अच्छी बहु रानी!" की रट भी लगा लेनी चाहिए।

हो सकता है यदि बहू के दिल में आपके प्रति थोड़ा कड़वापन भी आ गया हो तो वो धीरे धीरे कम हो जाएगा और आपके प्रति सम्मान की भावना बढ़ जायेगी।

अतः अपनी बहू में सिर्फ कमियां न ढूंढे, उसकी अच्छाइयों की भी कद्र करें ।

*"आज का संदेश"*
बहू के त्याग और सेवा को पहचानिये
*बेटे एवं बेटी के साथ बहू को भी अपना मानिए।*

औऱ "मेरी बेटी- मेरा अभिमान" "मेरा बेटा- मेरा अभिमान" तो सही है ...

*एक बार गर्व से कह के तो देखो मेरी बहू-मेरा अभिमान।*
@ everyone