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नवरात्रि व्रत
नवरात्र के व्रत-उपवास वर्ष में 2 बार रखने का विधान है। पहला विक्रम संवत के आरंभ में,चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लगातार नौ दिन तक, दूसरा, आश्विन माह के प्रतिपदा से नौ दिन तक। नवरात्रि मूल रूप से अपने मन को शुद्ध रखते हुए मां दुर्गा की पूजा अर्चना और तांत्रिक सिद्धियो को फलित करने का त्यौहार है।
मां दुर्गा शक्ति का स्वरूप हैं।मां अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं।सभी प्राणियों में चेतना के रूप में विद्यमान हैं।
पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, देवताओं का जब दानव महिषासुर से संग्राम हुआ, तब सभी देवता बचने का कोई उपाय न जानकर मां भगवती की शरण में गए। सब देवताओं के देवत्व से मां भगवती का उदय हुआ और सभी देवताओ ने अपने अपने अस्त्रों से मां भगवती को सुसज्जित किया। वह युद्ध लगातार नौ दिन तक चला।
अंत में राक्षस को देवी ने मार गिराया। सब देवता प्रसन्न हुए और देवी मां की स्तुति करने लगे।
मान्यता है कि जो भी व्यक्ति श्रद्धापूर्वक भक्तिभाव से इन नौ दिन तक पूजा एवं आराधना करता है ,देवी मां उनके सारे मनोरथ पूरण करती हैं।
मां दुर्गा सरस्वतीजी ,लक्ष्मी जी और शक्ति का प्रतीक हैं।मां दुर्गा चेतना, विद्या,तुष्टि,मातृशक्ति, निद्रा और वृत्ति के रूप में प्रत्येक विधा में विद्यमान हैं।
शास्त्रों में वर्णित मतानुसार, मां दुर्गा शक्ति का रूप होते हुए शिव जी की पत्नी हैं।सरस्वती जी,लक्ष्मीजी ,गणेश जी,और कार्तिकेय जी इनकी संतान हैं।घोर तपस्या के बाद अपने अटल निश्चय के कारण यह भोलेनाथ शिव जी की अर्धांगिनी बनी।आज से ही हिन्दू नव संवत्सर आरंभ होने के कारण वर्ष का आरंभ धार्मिक कृत्य से होने के कारण इसका महत्व और बढ जाता है।
कुछ लोग मुझसे असहमत हौ सकते हैं पर यह निर्विवादित सत्य है कि नियम से सात्विक आहार का पालन करते हुए मां दुर्गा की अराधना की जाए तो मानसिक शारिरिक एवं आर्थिक लाभ की प्राप्ति होती है।

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