हां यही प्यार है
‘ये कोई बात हुयी। आप दस कहो मैंने मान लिया। मैंने एक कहा तो मुंह बन गया,’’ कविता का स्वर तल्ख था। मैंने
उसकी आंखों में झांकने की कोशिश की। इस तल्खी के पीछे कहीं न कहीं उस बेनाम रिश्ते की पीड़ा थी, जो तीन साल
चलने के बाद टूट गयी।
”फिर प्रेम कहां हुआ?’’मेेैंने पूछा।
‘‘मेैं भी तो यही कह रही हॅू। प्रेम कहां हुआ? प्रेम होता तो वह मेरी एक बात मानता जरूर,’’ कविता बोली।
‘‘आपका प्रेम सच्चा था?’’
‘‘अपनी जानती हॅू कि सच्चा था।’’
‘‘उसकी?’’
‘‘कह नहीं सकती।’’ कुछ सोचकर मैं बोला,‘‘ मुझे लगता है कि आप दोनों का प्रेम परिपक्व था?’’
‘‘ये आप कैसे कह सकते है? प्रेम,प्रेम होता है। जहां भावनाओं के सिवाय कुछ नहीं होता।’’
‘‘आपकी भावनाओं से खेला उसने?’’ क्षणांश कविता किन्हीं ख्यालेां में खो गयी। उबरी तो उसकी आंखें भींगी हुई थी।
‘‘ऐसा ही समझ लीजिए।’’
‘सुना है कि वह शादीशुदा था?’
’हॉ।’’ मेरे कथन पर कविता ने नजरें झुका ली।
‘‘इसके बाद भी आपका झुकाव उसकी तरफ था? क्या यह व्यभिचार नहीं?’’
‘‘सिर्फ एक स्त्री के लिए? उस पुरुष के लिए नहीं जो शादीशुदा होकर भी एक निश्छल, निष्कलंक लडकी केा प्रेम के नाम
पर बरगलाता है।’’
‘‘आप अलग भी तो हो सकती थी।’’
‘पुरूष के लिए हो सकता है मगर एक स्त्री के आसान नहीं क्योंकि वह जब किसी को चाहती है तो दिल की गहराईओं
तक चाहती है। उसके लिए वह सब कुछ हो जाता है।’’
‘‘एक शादीशुदा से शादी करके क्या उसकी बीवी के साथ अन्याय नहीं करती?’’
‘‘प्रेम अंधा होता है।’’
‘तभी तो कह रहा हॅॅू। आप दोनो का प्रेम अपरिपक्व था।’’
‘‘झूठ। आप बिल्कुल झूठ कह रहे हेेै।‘‘ कविता उत्तेजित हो गयी।
‘‘चलिए मान लेते है कि आपका प्रेम परिपक्व था। फिर क्यों उसे लेकर आपका मन तिक्त रहता है? प्रेम का दूसरा नाम त्याग है।’’
‘‘उसे इतनी समझ कहां।’’
‘‘आपको तो थी?‘‘
‘‘मैं आपकी तरह महान नहीं। मैं एक साधारण स्त्री हूं। मुझमें भी मानवीय कमजोरियां है।’’
‘‘उसकी भी रही होगी?’’
‘‘वह धोखेबाज था। आपको पता है हम कितनी दूर निकल आये थे। यहां तक का शादी का फैसला ले चुके थे।’’
‘‘अच्छा हुआ आप बच गयी।’’ सुनकर कविता को अच्छा नहीं लगा। उसके दिल में आज भी उस रिश्ते की कसक थी।
‘‘क्या नाम बताया उसका, अनुराग?’’ मैंने अपनी याददाश्त पर जोर दिया।
‘‘हॉ, आपको पता है कि कितनी कानाफूसी हुई थी विभाग में।’’
‘‘किस लिए?’’
‘‘हमारे उसके प्रेम प्रसंग को लेकर।’’
‘‘किसे फर्क पड़ा? उसे या आपको?’’
‘‘उसे क्या पड़ेगा? कविता का चेहरा बन गया। ‘‘प्रेम में विष मीरा को ही पीना पड़ता है।’’ वह भावुक हो गयी।
‘‘उसकी बीवी को पता था कि अनुराग से आपका अफेयर है?’’
‘‘कह नहीं सकती। एक बार अनुराग उसे गांव से शहर ले आया। मेरा उससे परिचय कराया। वह कम पढी—लिखी गंवई...
उसकी आंखों में झांकने की कोशिश की। इस तल्खी के पीछे कहीं न कहीं उस बेनाम रिश्ते की पीड़ा थी, जो तीन साल
चलने के बाद टूट गयी।
”फिर प्रेम कहां हुआ?’’मेेैंने पूछा।
‘‘मेैं भी तो यही कह रही हॅू। प्रेम कहां हुआ? प्रेम होता तो वह मेरी एक बात मानता जरूर,’’ कविता बोली।
‘‘आपका प्रेम सच्चा था?’’
‘‘अपनी जानती हॅू कि सच्चा था।’’
‘‘उसकी?’’
‘‘कह नहीं सकती।’’ कुछ सोचकर मैं बोला,‘‘ मुझे लगता है कि आप दोनों का प्रेम परिपक्व था?’’
‘‘ये आप कैसे कह सकते है? प्रेम,प्रेम होता है। जहां भावनाओं के सिवाय कुछ नहीं होता।’’
‘‘आपकी भावनाओं से खेला उसने?’’ क्षणांश कविता किन्हीं ख्यालेां में खो गयी। उबरी तो उसकी आंखें भींगी हुई थी।
‘‘ऐसा ही समझ लीजिए।’’
‘सुना है कि वह शादीशुदा था?’
’हॉ।’’ मेरे कथन पर कविता ने नजरें झुका ली।
‘‘इसके बाद भी आपका झुकाव उसकी तरफ था? क्या यह व्यभिचार नहीं?’’
‘‘सिर्फ एक स्त्री के लिए? उस पुरुष के लिए नहीं जो शादीशुदा होकर भी एक निश्छल, निष्कलंक लडकी केा प्रेम के नाम
पर बरगलाता है।’’
‘‘आप अलग भी तो हो सकती थी।’’
‘पुरूष के लिए हो सकता है मगर एक स्त्री के आसान नहीं क्योंकि वह जब किसी को चाहती है तो दिल की गहराईओं
तक चाहती है। उसके लिए वह सब कुछ हो जाता है।’’
‘‘एक शादीशुदा से शादी करके क्या उसकी बीवी के साथ अन्याय नहीं करती?’’
‘‘प्रेम अंधा होता है।’’
‘तभी तो कह रहा हॅॅू। आप दोनो का प्रेम अपरिपक्व था।’’
‘‘झूठ। आप बिल्कुल झूठ कह रहे हेेै।‘‘ कविता उत्तेजित हो गयी।
‘‘चलिए मान लेते है कि आपका प्रेम परिपक्व था। फिर क्यों उसे लेकर आपका मन तिक्त रहता है? प्रेम का दूसरा नाम त्याग है।’’
‘‘उसे इतनी समझ कहां।’’
‘‘आपको तो थी?‘‘
‘‘मैं आपकी तरह महान नहीं। मैं एक साधारण स्त्री हूं। मुझमें भी मानवीय कमजोरियां है।’’
‘‘उसकी भी रही होगी?’’
‘‘वह धोखेबाज था। आपको पता है हम कितनी दूर निकल आये थे। यहां तक का शादी का फैसला ले चुके थे।’’
‘‘अच्छा हुआ आप बच गयी।’’ सुनकर कविता को अच्छा नहीं लगा। उसके दिल में आज भी उस रिश्ते की कसक थी।
‘‘क्या नाम बताया उसका, अनुराग?’’ मैंने अपनी याददाश्त पर जोर दिया।
‘‘हॉ, आपको पता है कि कितनी कानाफूसी हुई थी विभाग में।’’
‘‘किस लिए?’’
‘‘हमारे उसके प्रेम प्रसंग को लेकर।’’
‘‘किसे फर्क पड़ा? उसे या आपको?’’
‘‘उसे क्या पड़ेगा? कविता का चेहरा बन गया। ‘‘प्रेम में विष मीरा को ही पीना पड़ता है।’’ वह भावुक हो गयी।
‘‘उसकी बीवी को पता था कि अनुराग से आपका अफेयर है?’’
‘‘कह नहीं सकती। एक बार अनुराग उसे गांव से शहर ले आया। मेरा उससे परिचय कराया। वह कम पढी—लिखी गंवई...