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अम्मा के इंतजार का अंत....
वो दिन रात निस्वार्थ काम करती है,
खुद दर्द सह कर भी मुस्कान बिखेरती है ।
वो है अम्मा..
हम सब की अम्मा की तरह वो है राजेंद्र की बुढ़ी अम्मा ।
राजेन्द्र की अम्मा उसकी शादी के बाद वृद्धाश्रम में रहती है। सुबह सुबह उठकर पूजा करना नहाना इत्यादि करके अपने आचार् के काम में लग जाती है।
अम्मा सबके साथ अच्छा व्यवहार करती है हस्ती मुस्कराती अम्मा कलेजे में कितना दर्द छुपाये रखती है किसी को कानों -कान खबर ही नहीं है।
आज उनका जन्मदिन है वो बहुत खुश है और अपने बेटे के आने की राह देख रही हैं।
राह देखते देखते साँझ होने आयी है पर बेटा नहीं आता है।
आता है तो एक लिफाफा जिसमें जन्मदिन मुबारक मेरी प्यारी माँ लिखा होता है और लिखा होता है कि मैं किसी जरूरी काम से बाहर जा रहा हूं मेरी राह न देखे।
अम्मा का दिल टूट जाता है उनकी उम्मीद हार जाती है।
ये पहली बार ही नहीं हुआ है लगातर पाँच वर्षों से होता आ रहा है।
आज अम्मा की आँखों में पहली बार आँसू झलक रहे है।
उनका सब्र की डोर ढिली पड गयी है ।
अब उनसे रुका नहीं जा रहा बिन बेटे को देखे
वो एक निर्णय लेती है वो खत की डाक से अपने बेटे का पता लिखकर निकल पड़ती है उसको एक पल भर देखने की उम्मीद में ।
बड़ी मुश्किल से राहगीरों से पूछ कर उस पते पर पहुँच जाती है।
देखती है आलिशान घर के सामने बिखारी पंक्ति में खड़े होते हैं।
वो बुढ़ी माँ चौकीदारों को कहती हैं मैं राजेंद्र की माँ हूँ कृपया आप उसे बुला दीजिये आपकी मेहरबानी होगी।
जो ज़वाब उसे चौकीदार देते है उससे उसका दिल झिंझोड जाता है और उसकी बुढ़ी हङिया उसका साथ छोड़ जाना चाहती है।
साहब की माँ तो मर चुकी है।
अम्मा थोड़ी दूर जाकर य़ह सुनकर बैठ जाती है तभी आलिशान घर का दरवाजा खुलता है
उसका बेटा उसकी पोती के साथ बाहर आता है जिसका आज जन्मदिन था और भिखारियों में रुपये बांटता है।
अम्मा सिर झुकाए ये सब देख रही होती है। तभी वो अम्मा के पास आता है और अम्मा को पैसे देकर दुआ करने को कहता है।
अम्मा सिर झुकाए दुआ करती है जैसे हमे हमारी औलाद ने छोड़ा वैसे आपका परिवार आपको कभी न छोड़े साहब।
येकहकरअम्माअपना सर ऊँचा उठा लेती है जब उनका बेटा उनको देखता है तो वो शर्म से. तार-तार हो जाता है।
अम्मा बिना कुछ कहे आश्रम की ओर चल पड़ती है।
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© meetali