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बस स्टेशन: छोटी लड़की
गर्मी की छुट्टियाँ खत्म होने में केवल पंद्रह दिन बचे थे। आज माँ और मेरी बड़ी बहन मामा जी के घर से अपने घर आने वाले थे। इस बार में नानी के घर नहीं गया क्योंकि विडियो गेम और अन्य खेलों ने मुझे अपने जाल में फँसा लिया था।
मैं पापा के साथ माँ और दीदी को लेने के लिए बस स्टेशन पहुंच गया। बस को आने में अभी आधे घंटे से भी ज्यादा का समय था।
लेकिन........पापा को कौन समझाए! जाकर बैठ ग‌ए दोनों बस स्टेशन के सामने वाली चाय की हॉटल पर।
जून की लू वाली भयंकर गर्मी, ऊपर से सड़क पर पैर रखने पर ऐसे लग रहा था; जैसे जूते ही पिघल गए। बिल्कुल खाली सड़क लग रही थी। दो-चार लोग दिख रहें थे, वो भी किसी-न-किसी तरीके से अपने हाथ-पैरों व चेहरे को सूर्य के प्रकोप से बचाने की कोशिश कर रहे थे।
अब वहांँ पर बैठा मैं ऐसे नज़ारे देखकर ही धीरे-धीरे मुस्कुरा रहा था। पापा को देखो! अखबार को तीसरी बार उठाकर पढ़ने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे पापा को उस अखबार को रटकर कोई कठिन परीक्षा देनी थी।
उन्हें देखकर मैं थोड़ा और हँसने लगा।
तभी मैंने कुछ ऐसा देखा जिसे देखकर मेरी मुस्कान कहीं खो सी गई। ठण्डा़ जूस पीते-पीते मैंने देखा कि इतनी तेज गर्मी में खाली सी सड़क पर पाँच-छ: साल की एक छोटी सी लड़की उधर से नंगे पैर आ रही थी।
कुछ बिखरी सी चोटी, आँखो में नमी, फटे हुए होंठ, भोला सा मुखमंडल, सांवला सा चेहरा जो सुंदर भी था, लाल रंग की फटी हुई फ्राॅक और पांव में छाले थे उस लड़की के।
सभी लोग अपने-अपने काम में लगे थे। पर उसे देखकर मैं लोगों पर हँसने का अपना काम ही भूल गया और मैरी आँखों में नमी सी छलक पड़ी।
वह लड़की चाय की हॉटल की तरफ आई और छज्जे के नीचे जाकर चुपचाप बैठ गई।
कुछ लोगों ने उसपर दया दिखाई और एक-दो रुपयें उसके कटोरे में डाले, लेकिन उसको खाना किसी ने नहीं दिया।
सबको उसका कटोरा नज़र आया लेकिन उसकी दशा, पतले-दुबले हाथ-पैर व मुर्झाया हुआ चेहरा नज़र नहीं आया।
बस के आने का समय हो चुका था। माँ और दीदी आ ग‌ए। पापा मुझे लेकर जाने लगे। लेकिन वह उस टिफिन बॉक्स को वहीं भूल रहे थे, जो उन्होंने हम सबके खाने के लिए पेक करवाया था और जिसे वह छोटी लड़की कुछ मिनट से ही घूर रही थी।
पापा की आँखो में मैंने जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश को देख लिया और मैं भी पापा के साथ वहां से चला गया।
हम माँ और दीदी को लेकर घर जाने लगे। जाते समय मैंने गाड़ी से उस हाॅटल पर नज़र डाली तो वह छोटी लड़की और टिफिन बॉक्स दोनों जा चुके थे।

मैंने देख लिया की कुछ लोगों में अभी भी इंसानियत बाकी है।


© dinesh@M