...

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थाम
जब देखा कुछ नहीं सामने हैं
हर और से धुंधला सा छाया प्रति होता
पता ही नहीं था कि अपना कोन पराया कोन था

आज कुछ ऐसी विचत्र प्रस्तिति में आ गया हो
जहा सभी का साथ मिल पाए
जताया था उम्मीद
पर सचाई कुछ और ही मंजर देख

थोडा सा ज्यादा परेशान चिल्ला उठी देखी यह हाल अपना हाथ पकड़ ली
रुक डी
आज खुद को संभाल लिया
दूसरे पल में हाथ काट डाला

कोई नहीं जानता था
किस हाल में थी
मतलब नहीं रखता है कोई ऐसा
सब अपने अपने स्वार्थ सिद्ध के लिए नाता जोड़ हो कार्य
किनारा कर लिया करते हैं
छोड़ मेरे हाल पर
गिना हज़ार मजबूरियां।।

बस कुछ सबक सिखा दिया गया है समय से पहले देखा अपने बने लोगो का चेहरा देखकर समझा दिया था ख़ुद को नुकसान पहुंचा कर ना हुआ खुद पे संयम
संभाल न पाए
बिखर गई थी
पर उस पल भर देखना
राते नींद ना आना
गुस्सा आ जाना
बोल ना पाना मुश्किल में हो
हज़ार बाते कहना चाहती थी
पर चुप चाप संभाल करती रहीं
जो सोचा था मुकाम हासिल
कार्य सिद्ध मैं लगी हुई हो
बिन बोले
सब समा
चलती जा रही हूं
अब अच्छा लगता हैं खुद से ख़ुद को खत्म कर देना
पर कुछ हैं करते जाना
बस वह ख्याल रखें ध्यान केन्द्रित प्रथम अपने कार्य पे
थाम हाथ पकड़ चल रही हू झूठी शान से दौर में हठ के

बबिता कुमारी

© story writing