*** एक मिलन ***
" एक व्यक्ति जिसका नाम मेहुल हैं , वो रोज दिनचर्या व्यस्त रहता हूं , वो घर में अकेला रहता है , वो सुबह अपने काम पे जाता और रात होने पर घर वापस आता जाता है , उसके पास एक कार होता है जो होंडा सिटी होता है , वो आये दिन अपने दिनचर्या के गाड़ी का इस्तेमाल करता रहता जौसे बाजार जाना आना हो या दफ्तर आना जाना हो , वो अपने गाड़ी का इस्तेमाल करता है , वो रोज अपने समय से सुबह दफ्तर जाता और रात को शाम होते 7:00 छुट्टी लेकर घर वापस आ जाता था । एक ऐसा हुआ की दफ्तर से निकलते घर के लिए तेज बारिश होने लगी , और बारिश तेज सुरु होने के साथ प्रचंड हवा और बिजली करने लगी , और घनघोर बारिश और हवाये चलने लगी ,
जिस रास्ते वो घर आता जाता था , आधे रास्ते के बाद एक पुल परता था ।
जब वो आधे रास्ते तक आया पुल के पास तो देखता है कि आंधी तुफान और बेजोड़ बारिशों के कारण पुल का आधा हिस्सा गिर के बह चुका रहता है बारिश और नदी के तेज धार के बहाव के साथ ।
ऐसे जब वो पुल के पास पहुंचता हैं , पुल का मुयाना करता हैं गाड़ि से उतर के । देखता है स्तथी पुल की ठिक नहीं होती है । अब घर जाये तो जाये कैसे इतनी घनी अंधेरी रात में । कुछ समझ नहीं आने के कारण वहीं वो पुल के पास गाड़ी में बैठ जाता है और इधर उधर की बातें सोचने लगाता है , सोचते - सोचते उसे याद आता है एक दुसरी उभर - खाबर वाली कच्ची सड़क भी जाती हैं ।
और फिर वो आव सोचता ना ताव जल्दी से गाड़ी चालु करता है और दुसरे रास्ते के निकल परता हैं वहां से ,
जब दुसरे रास्ते के लिए निकलता बारीश और हवाये और तेज हो जाती है गरज के साथ , जोर-जोर से बिजली करने लगती हैं ।
जब तक इस रास्ते पे आता जाता है देखता जगह - जगह उभर खाबर रास्ते में बारिश का पानी भर जाता है , ऐसे एक जगह उसका होंडा सिटी गाड़ी फंस जाती है किचर में , कितना भी करता है उस किचर से गाड़ी निकलने के नाम नहीं लेता हैं , फिर वो गाड़ी उतरता है देखता बहुत पानी है , वो दुसरे दरवाजे जब उतरता है तो एक खोदी हुई जमीन पे पांव परता है उसको कुछ महसूस होता जौसे किसी लाश हो । वो उस पे ध्यान ना देकर गाड़ी को धक्का देने लगता है , थोड़े देर वहां एक अनजान लड़की की आवाज़ गुजती हैं अरे वो साहब मुझे भी घर छोड़ दो ।
इतने वो गाड़ी के पास आ जाती हैं वो बोलती हैं साहब आप गाड़ी सुरु करो मैं धक्का लगाती हूं । फिर भैचका होकर ठीक बोलता है ठीक है मैडम । थोड़ी मसकत के बाद गाड़ी किचर से निकल जाती हैं । और गाड़ी बैठते हैं और घर की तरफ जाते हैं । थोड़े सफर घर उसका आ जाता है । वो मैडम को अपने घर में रुकने लिए बोलता है बारिश रुकने तक और वो मान जाती है , इस तरह घर में पहुंच के आपस में कुछ बात करते हैं ।
मेहूल बोलता कंचन तुम दुसरे कमरे में आराम कर लो , वो बोलती नहीं तुम्हारे पास सोना है अकेले निंद नहीं आयेगी । इस तरह मेहूल के साथ सोने लगती है , वो आंधी रात में दुल्हन की तरह सज संवर के मेहूल के पास आती हैं और उसे चूमने लगती हैं उसके होंठों को , और चुमने के बाद मेहूल के साथ सारिरीक सम्बन्ध बनाती है अपने अरमानों को धीरे धीरे हवा देने लगती है , इस तरह दो जिस्म एक दूजे में समा जाते हैं , अपने तन और मन के अरमां पुरा करती है ।
सुबह जब मेहूल की निंद खुलती हैं वो कंचन से पुछता तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों की । कंचन बोलती हैं मैं सुहागरात की प्यासी थी । मैं चुड़ैल हूं , मेरी सादी हुई थी , सुहागरात रात के दिन मेरे को सांप ने काट खाया और मैं मर गई । मेरी जिस्म और आत्मा सुहागरात रात के लिए तरस रही थी और मैं प्यासी थी । तुमने मुझे अपनाकर मेरे जिस्म और आत्मा को अपने प्यार से भर दिये। और जोर से हंस के मेहूल को गले लगती है फिर उसके लबों को चुम के मेहूल को प्यार करने लगती हैं । थोड़ी देर बाद कंचन मेंहूल से बोलती तुमने मुझे बहुत प्यार किया और दिया और मेरे जिस्म और आत्मा को फिर से प्यार से भर के मुझे मोक्ष दे दिये । अब मैं जा रही हूं और अपना ख्याल रखना । इस तरह मेंहूल असतबद रह जाता है अपने घर में अकेले ।
© Rabindra Ram
जिस रास्ते वो घर आता जाता था , आधे रास्ते के बाद एक पुल परता था ।
जब वो आधे रास्ते तक आया पुल के पास तो देखता है कि आंधी तुफान और बेजोड़ बारिशों के कारण पुल का आधा हिस्सा गिर के बह चुका रहता है बारिश और नदी के तेज धार के बहाव के साथ ।
ऐसे जब वो पुल के पास पहुंचता हैं , पुल का मुयाना करता हैं गाड़ि से उतर के । देखता है स्तथी पुल की ठिक नहीं होती है । अब घर जाये तो जाये कैसे इतनी घनी अंधेरी रात में । कुछ समझ नहीं आने के कारण वहीं वो पुल के पास गाड़ी में बैठ जाता है और इधर उधर की बातें सोचने लगाता है , सोचते - सोचते उसे याद आता है एक दुसरी उभर - खाबर वाली कच्ची सड़क भी जाती हैं ।
और फिर वो आव सोचता ना ताव जल्दी से गाड़ी चालु करता है और दुसरे रास्ते के निकल परता हैं वहां से ,
जब दुसरे रास्ते के लिए निकलता बारीश और हवाये और तेज हो जाती है गरज के साथ , जोर-जोर से बिजली करने लगती हैं ।
जब तक इस रास्ते पे आता जाता है देखता जगह - जगह उभर खाबर रास्ते में बारिश का पानी भर जाता है , ऐसे एक जगह उसका होंडा सिटी गाड़ी फंस जाती है किचर में , कितना भी करता है उस किचर से गाड़ी निकलने के नाम नहीं लेता हैं , फिर वो गाड़ी उतरता है देखता बहुत पानी है , वो दुसरे दरवाजे जब उतरता है तो एक खोदी हुई जमीन पे पांव परता है उसको कुछ महसूस होता जौसे किसी लाश हो । वो उस पे ध्यान ना देकर गाड़ी को धक्का देने लगता है , थोड़े देर वहां एक अनजान लड़की की आवाज़ गुजती हैं अरे वो साहब मुझे भी घर छोड़ दो ।
इतने वो गाड़ी के पास आ जाती हैं वो बोलती हैं साहब आप गाड़ी सुरु करो मैं धक्का लगाती हूं । फिर भैचका होकर ठीक बोलता है ठीक है मैडम । थोड़ी मसकत के बाद गाड़ी किचर से निकल जाती हैं । और गाड़ी बैठते हैं और घर की तरफ जाते हैं । थोड़े सफर घर उसका आ जाता है । वो मैडम को अपने घर में रुकने लिए बोलता है बारिश रुकने तक और वो मान जाती है , इस तरह घर में पहुंच के आपस में कुछ बात करते हैं ।
मेहूल बोलता कंचन तुम दुसरे कमरे में आराम कर लो , वो बोलती नहीं तुम्हारे पास सोना है अकेले निंद नहीं आयेगी । इस तरह मेहूल के साथ सोने लगती है , वो आंधी रात में दुल्हन की तरह सज संवर के मेहूल के पास आती हैं और उसे चूमने लगती हैं उसके होंठों को , और चुमने के बाद मेहूल के साथ सारिरीक सम्बन्ध बनाती है अपने अरमानों को धीरे धीरे हवा देने लगती है , इस तरह दो जिस्म एक दूजे में समा जाते हैं , अपने तन और मन के अरमां पुरा करती है ।
सुबह जब मेहूल की निंद खुलती हैं वो कंचन से पुछता तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों की । कंचन बोलती हैं मैं सुहागरात की प्यासी थी । मैं चुड़ैल हूं , मेरी सादी हुई थी , सुहागरात रात के दिन मेरे को सांप ने काट खाया और मैं मर गई । मेरी जिस्म और आत्मा सुहागरात रात के लिए तरस रही थी और मैं प्यासी थी । तुमने मुझे अपनाकर मेरे जिस्म और आत्मा को अपने प्यार से भर दिये। और जोर से हंस के मेहूल को गले लगती है फिर उसके लबों को चुम के मेहूल को प्यार करने लगती हैं । थोड़ी देर बाद कंचन मेंहूल से बोलती तुमने मुझे बहुत प्यार किया और दिया और मेरे जिस्म और आत्मा को फिर से प्यार से भर के मुझे मोक्ष दे दिये । अब मैं जा रही हूं और अपना ख्याल रखना । इस तरह मेंहूल असतबद रह जाता है अपने घर में अकेले ।
© Rabindra Ram
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