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स्त्री


स्त्रियाँ,
बाथरूम मे जाकर
कपड़े भिगोती हैं,
बच्चों और पति की शर्ट की
कॉलर घिसती हैं,
बाथरूम का फर्श धोती हैं,
ताकि चिकना ना रहे,
फिर बाल्टी और मग भी मांजती हैं,
तब कहीं जाकर नहाती हैं!
और तुम कहते हो कि
स्त्रियां नहाने में कितनी देर लगाती हैं!

स्त्रियां,
किचन में जाकर,
सब्जियों को साफ करती हैं,
तो कभी मसाले निकालती हैं,
बार बार अपने हाथों को धोती हैं,
आटा मलती हैं,
बर्तनों को कपड़े से पोंछती हैं,
वही दही जमाती घी बनाती हैं,
और तुम कहते हो कि स्त्रियाँ,
खाना में कितनी देर लगाती हैं!

स्त्रियां,
बाजार जाती हैं,
एक एक सामान का मौल भाव,
पैसे बचाने के लिये करती हैं,
अच्छी सब्जियों, फलों को छांटती हैं,
पैसे बचाने के चक्कर में पैदल
चलती हैं,
भीड में दुकान को तलाशती हैं,
और तुम कहते हो कि स्त्रियाँ,
बाजार में कितनी देर लगाती हैं!

स्त्रियां,
बच्चों और पति के जाने के बाद
चादर की सलवटें सुधारती हैं,
सोफे के कुशन को ठीक करती हैं,
सब्जियां साफ करके फ्रीज में रखती हैं,
कपड़े घड़ी प्रेस करती हैं,
राशन जमाती है;
पौधों में पानी डालती हैं,
कमरे साफ करती हैं,
बर्तन सामान जमाती हैं,
और तुम कहते हो कि स्त्रियाँ,
दिनभर से जाने क्या करती हैं!

स्त्रियां,
कही जाने के लिए तैयार होते समय,
कपड़ो को उठाकर लाती हैं,
दूध खाना फ्रिज में रखती हैं,
बच्चो को दिदायते देती हैं,
नल चेक करती हैं,
दरवाजे लगाती हैं,
इमर्जेंसी के लिये पैसे रखती हैं,
फिर खुद को खूबसूरत बनाती हैं,
ताकि तुमको अच्छा लगें,
और तुम कहते हो स्त्रियाँ,
तैयार होने में कितनी देर लगाती हैं!

स्त्रियां,
बच्चों की पढ़ाई डिस्कस करती हैं,
खाना क्या बनाना हैं, पूछती हैं,
घर का हिसाब किताब रखती हैं,
रिश्तें नातों के हालचाल बताती हैं,
फीस, बिल, भरना याद दिलाती हैं,
और तुम कह देते कि स्त्रियाँ
कितना ज्यादा बोलती हैं!

स्त्रियां दिनभर काम करके थोड़ा
सा दर्द तुमसे बाट देती हैं,
मायके की याद आने पर
दुखी होती हैं,
बच्चों के नंबर कम आने पर,
परेशान होती हैं,
थोड़े से आँसू अपने आप
कभी भी आ जाते हैं,
मायके में ससुराल की इज़्ज़त
ससुराल में मायके की बात
को रखने के लिए,
जाने क्या क्या बातें बनाती हैं,
और तुम कहते हो की स्त्रियां कितनी नाटकबाज होती हैं!

लेकिन इन सबके बाद भी स्त्रियां
इस दुनियाँ में तुमसे ही स्वयं से
ज्यादा प्यार करती है....✍🏻
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