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बालविवाह ( हास्य लघु कथा )
गर्मियों के दिनों में रात के समय खुले आसमान के निचे बैठ कर बातें करने का आनंद कुछ ओर ही होता है ।कल रात को हम सभी ( दादी , मम्मी -पापा ,छोटे -बड़े चाचा - चाची , दादी भुआ और सभी भाई - बहन आदी ) बैठ कर बातें रहे थे । बातें करते -करते अचानक हम लगभग 70 -75 साल पीछे चले गये । शादी का माहौल था , चारों तरफ खुशियों की लहर छा रही थी मंगल गीत गाए जा रहें थे , बेंड बाजा नहीं बज रहे थे क्योंकि उस समय हुआ ही नहीं करते थे ।
तभी अचानक हाहाकार मच गया बराती खाना छोड़कर खड़े हो गए । कुछ लोग इधर - उधर दौड़ने लग गए । बहुत ही भयानक घटना घटित हो गई दुल्हन के पीछे एक साँप पड़ गया । दुल्हन आगे - आगे साँप पीछे - पीछे और उनके पीछे 3 -4 लोग लाठियाँ लेकर लेकिन ना तो दुल्हन रुके और ना साँप मरे इतने में मेरे दादाजी आए हीरो की स्टाइल में उन्होंने कहा तुमसे एक साँप ना मरा यूँ ही खा - खाकर बैल हो गए हो लेकिन दादा जी भी अपार कोशिसों के बाद भी नाकाम रहें ।
हमें सुनते - सुनते घबराहट होंने लग गई की फिर क्या हुआ होगा ? साँप ने किसी को काँटा तो नहीं न ? पर हमें क्या पता था आनंद ही अब आने वाला है । हमारे ही गाँव के एक दादा जी यह सब नजारा देख रहें थे उन्होंने हिम्मत जुटाई और दुल्हन को रोका तब उनकी चील की निगाहें गठजोड़ पर पड़ी ( फेरों के समय दूल्हा के पटके और दुल्हन की ओढ़नी को जिस दुपट्टे से बांधा जाता है ) जो कि दुल्हन की ओढ़नी से बंधा हुआ नीचे लटक रहा था ।
हम जोर - जोर से खूब हंसने लग गए मेरे पापा का कहने का अंदाज इतना निराला था की हमें शायद ही इतना आनंद पहले कभी आया होगा , मतलब किसी ने इतना भी ध्यान नहीं दिया की यह साँप है या ओर कुछ । बस दुल्हन चिल्लाते हुए दौड़ती रही बचाओं......बचाओं .......और वह सब पागलों की तरह लाठियाँ लेकर पीछे पड़े रहें मारने को । गलती उनकी भी नहीं है क्योंकि उस समय बिजली ही नहीं थी सिर्फ दीपक और चिमनियों की रौशनी से सब काम होता था ।
आपको बता दूँ यह कहानी मेरी दादी भुआ के विवाह की है उस समय उनकी उम्र 8 से 10 वर्ष के बिच थी ।