भीष्म युधिष्ठिर संवाद
।। राम ।।
मित्रों, आज #गुरुवार है, आज हम आपको मृत्युशैया पर लेटे #भीष्म ने युधिष्ठिर को जो शिक्षा दी,वही बतायेगें!!!!!!!!!!
एक बार उपदेश के बीच में ही हस्तक्षेप करते हुए द्रौपदी ने कहा- आपके ये उपदेश उस समय कहां गए थे, जब मेरा चीरहरण किया जा रहा था? द्रौपदी के इस प्रश्न पर पितामह भीष्म ने कहा- 'बेटी, उस समय मैंने दुर्योधन का दूषित अन्न खा रखा था इसलिए मेरी बुद्घि में उस समय दोष था, पर अब इतने लंबे समय तक बाणों की शैया पर रहने से मेरा दूषित रक्त बह गया है अत: अब मेरी बुद्घि भी निर्मल हो गई है। ...जैसा खाओगे अन्न, वैसा बनेगा मन।'
महाभारत अनंत ज्ञान का भंडार है। उसी में धर्म, नीति, राजनीति, ज्ञान, विज्ञान, योग, इतिहास, मानवशास्त्र, रहस्य, दर्शन, व्यवस्था आदि की संपूर्ण बातों का समावेश है। यह धर्मिक ग्रंथ होने के साथ-साथ इतिहास और समाज का ग्रंथ भी है। दुनिया के सभी धर्म, दर्शन, विज्ञान, ज्योतिष, वास्तु के सिद्धांत सभी महाभारत से ही प्रेरित हैं।
महाभारत युद्ध और काल की विषम परिस्थितियों में भी ज्ञान की गंगाएं बही। यह ज्ञान आज हमारे समक्ष 1.भीष्म नीति, 2.विदुर नीति, 3.गीता और 4.यक्ष प्रश्न के नाम से प्रचलित है। यह सभी महाभारत के ही हिस्से हैं। इसके अलावा भी हमें महाभारत में हजारों तरह के ज्ञान की बातें पढ़ने को मिलती है। महाभारत को घर मे रखना चाहिए।
भीष्म और युद्धिष्ठिर संवाद हमें भीष्मस्वर्गारोहण पर्व में मिलता है। इसमें केवल 2 अध्याय (167 और 168) हैं। इसमें भीष्म के पास युधिष्ठिर का जाना, युधिष्ठिर की भीष्म से बात, भीष्म का प्राणत्याग, युधिष्ठिर द्वारा उनका अंतिम संस्कार किए जाने का वर्णन है।
अठारह दिनों के युद्ध में दस दिनों तक अकेले घमासान युद्ध करके भीष्म ने पाण्डव पक्ष को व्याकुल कर दिया और अन्त में शिखण्डी के माध्यम से अपनी मृत्यु का उपाय स्वयं बताकर महाभारत के इस अद्भुत योद्धा ने शरशय्या पर शयन किया। उनके शरशैया पर लेटने के बाद युद्ध 8 दिन और चला। लेकिन भीष्म पितामह ने शरीर नहीं त्यागा था, क्योंकि वे चाहते थे कि जब सूर्य उत्तरायण होगा तभी वे शरीर का त्याग करेंगे। भीष्म पितामह शरशय्या पर 58 दिन तक रहे। उसके बाद उन्होंने शरीर त्याग दिया तब माघ महीने का शुक्ल पक्ष था।
कहते हैं कि इस युद्ध के समय अर्जुन 55 वर्ष, श्रीकृष्ण 83 वर्ष और भीष्म पितामह150 वर्ष के थे। उस काल में 200 वर्ष की उम्र होना सामान्य बात थी। बौद्धों के काल तक भी भारतीयों की सामान्य उम्र 150 वर्ष हुआ करती थी। इसमें शुद्ध वायु, वातावरण, उचित आहार और योग-ध्यान का बड़ा योगदान था।
बाद में जब सूर्य के उत्तरायण होने पर युधिष्ठिर आदि सगे-संबंधी, पुरोहित और अन्यान्य लोग भीष्म के पास पहुंचते हुए। उन सबसे पितामह ने कहा कि इस...
मित्रों, आज #गुरुवार है, आज हम आपको मृत्युशैया पर लेटे #भीष्म ने युधिष्ठिर को जो शिक्षा दी,वही बतायेगें!!!!!!!!!!
एक बार उपदेश के बीच में ही हस्तक्षेप करते हुए द्रौपदी ने कहा- आपके ये उपदेश उस समय कहां गए थे, जब मेरा चीरहरण किया जा रहा था? द्रौपदी के इस प्रश्न पर पितामह भीष्म ने कहा- 'बेटी, उस समय मैंने दुर्योधन का दूषित अन्न खा रखा था इसलिए मेरी बुद्घि में उस समय दोष था, पर अब इतने लंबे समय तक बाणों की शैया पर रहने से मेरा दूषित रक्त बह गया है अत: अब मेरी बुद्घि भी निर्मल हो गई है। ...जैसा खाओगे अन्न, वैसा बनेगा मन।'
महाभारत अनंत ज्ञान का भंडार है। उसी में धर्म, नीति, राजनीति, ज्ञान, विज्ञान, योग, इतिहास, मानवशास्त्र, रहस्य, दर्शन, व्यवस्था आदि की संपूर्ण बातों का समावेश है। यह धर्मिक ग्रंथ होने के साथ-साथ इतिहास और समाज का ग्रंथ भी है। दुनिया के सभी धर्म, दर्शन, विज्ञान, ज्योतिष, वास्तु के सिद्धांत सभी महाभारत से ही प्रेरित हैं।
महाभारत युद्ध और काल की विषम परिस्थितियों में भी ज्ञान की गंगाएं बही। यह ज्ञान आज हमारे समक्ष 1.भीष्म नीति, 2.विदुर नीति, 3.गीता और 4.यक्ष प्रश्न के नाम से प्रचलित है। यह सभी महाभारत के ही हिस्से हैं। इसके अलावा भी हमें महाभारत में हजारों तरह के ज्ञान की बातें पढ़ने को मिलती है। महाभारत को घर मे रखना चाहिए।
भीष्म और युद्धिष्ठिर संवाद हमें भीष्मस्वर्गारोहण पर्व में मिलता है। इसमें केवल 2 अध्याय (167 और 168) हैं। इसमें भीष्म के पास युधिष्ठिर का जाना, युधिष्ठिर की भीष्म से बात, भीष्म का प्राणत्याग, युधिष्ठिर द्वारा उनका अंतिम संस्कार किए जाने का वर्णन है।
अठारह दिनों के युद्ध में दस दिनों तक अकेले घमासान युद्ध करके भीष्म ने पाण्डव पक्ष को व्याकुल कर दिया और अन्त में शिखण्डी के माध्यम से अपनी मृत्यु का उपाय स्वयं बताकर महाभारत के इस अद्भुत योद्धा ने शरशय्या पर शयन किया। उनके शरशैया पर लेटने के बाद युद्ध 8 दिन और चला। लेकिन भीष्म पितामह ने शरीर नहीं त्यागा था, क्योंकि वे चाहते थे कि जब सूर्य उत्तरायण होगा तभी वे शरीर का त्याग करेंगे। भीष्म पितामह शरशय्या पर 58 दिन तक रहे। उसके बाद उन्होंने शरीर त्याग दिया तब माघ महीने का शुक्ल पक्ष था।
कहते हैं कि इस युद्ध के समय अर्जुन 55 वर्ष, श्रीकृष्ण 83 वर्ष और भीष्म पितामह150 वर्ष के थे। उस काल में 200 वर्ष की उम्र होना सामान्य बात थी। बौद्धों के काल तक भी भारतीयों की सामान्य उम्र 150 वर्ष हुआ करती थी। इसमें शुद्ध वायु, वातावरण, उचित आहार और योग-ध्यान का बड़ा योगदान था।
बाद में जब सूर्य के उत्तरायण होने पर युधिष्ठिर आदि सगे-संबंधी, पुरोहित और अन्यान्य लोग भीष्म के पास पहुंचते हुए। उन सबसे पितामह ने कहा कि इस...