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दास्तां ए ज़िंदगी 😊
लिखता हूं नाम कई बार और कई बार निहार लेता हूं
भरकर ख्यालों में अपने फिर काग़ज़ पर उतार लेता हूं...।
एक फ़रिश्ते ने आकर मेरी ज़िंदगी मेहरबान कर दी
इबादत से उनकी मैं अपने मुकद्दर को भी संवार लेता हूं...।
कहते हैं कि कमबख्त ज़िंदगी बहुत बड़ी बेवफ़ा है
उन्हें कैसे बेवफ़ा कह दूं जिनका नाम मैं सुबह शाम लेता हूं...।
रहता हूं जब मैं दूर उनसे यादें उनकी बेरहम तड़पा जाती है
तब निकालकर उनकी तस्वीर अपने सीने से लगा लेता हूं...।
बहते हैं उनकी याद में हर आंसू होंठों पे मुस्कान बनकर
अपनी झोली से तमाम खुशियां उनपर लुटा देना चाहता हूं...।

पड़ी मुझपे उनकी निगाहों का असर देखता हूं
कंटीली झाड़ियों में मैं फूलों का शजर देखता हूं

हुआ कुछ ऐसा असर उनकी नज़र ए झलक का
रातों में अब सहर और दिन में क़मर देखता हूं

मंज़िल मिले ना मिले मगर ये राह गुजरती रहे
साथ में चलते हुए मैं वो सुहाना सफ़र देखता हूं

सुनाती है ज़िंदगी नित नई ग़ज़लें मुझे ऐसे कि
मेहरबानी उनके प्यार की अपने ऊपर देखता हूं

ताउम्र अंधेरों वीरानों में गुजरती रही ज़िंदगी मेरी
उनका साथ पाकर अब एक नया सहर देखता हूं

© विकास - Eternal Soul✍️