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"गुलाब का एक बेरंग फूल" भाग-5 लेखक- मनी मिश्रा
(आगे)..

मैंने एक बार फिर पूछा, लेकिन क्यों?" तुम्हारे घर वाले कहां हैं? वे तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे ..............
मेरे सवालों में आश्चर्य घुलता जा रहा था ।जिसे उसकी ख़ामोशी और बढ़ावा दे रही थी। एक फरेब,जिसकी गहराई में ,"जैसे कोई सच छुपा बैठा था" उस पल ऐसा लगा था ,जैसे सब कुछ रुक सा गया हो ।
"....... यह पेड़ ,यह पत्ते, यह फूल, यह हवाएं, यह बादल, ये वक्त ,वह, मैं,................मैंने अपने आप को छूकर जानने की कोशिश की ,कि कहीं यह सपना तो नहीं। तभी अंधेरे को चीरती सी एक आवाज मुझ तक आयी ...."मुझे विश्वास है कि वह जरूर आएगी ,..
मैंने देखा वह मुझे घूर रहा था लेकिन एक बुदबुदाहट उसके होठों पर अब भी थी।
जाने कैसी हमदर्दी हो गई थी उससे ,जो उसे डांट पड़ी "अरे अगर उसे आना ही होता तो वह जाती क्यों?
मेरे इतना कहते ही वह जैसे सुन्न पड़ गया था। उसकी आंखें .."कुछ बुदबुदआती" हुई मेरे होठों को लगातार घूरने लगी थी ।जैसे वह इस बात की पूरी जांच-पड़ताल करना चाहता हो, की क्या मैंने ही उससे यह बातें कही है?....
वह बिना पलक झपकाए मुझे देख रहा था, फिर अचानक वह दूसरी...