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तेरी-मेरी यारियाँ ! ( भाग-7 )


निवान पूरी रसोई मे कुछ खाने के लिए ढूंढता है पर उसको कुछ नही मिलता तभी उसे याद आता है और वह मन ही मन बोलता है ।

निवान :- अरे हाँ! क्या पता मेरे टिफिन मे कुछ रखा हो खाने के लिए और स्कूल मे तो मैंने खाना भी कम खाया था ।

वह जल्दी से अपना स्कूल बैग उठाता है और टिफिन को बैग से बाहर निकाल कर देखता है तो उसमे आधी रोटी और सब्जी देखकर वह खुश हो जाता है और सोचता है ।

निवान :- सोचते हुए,,,,,,,,, अच्छा ही है । आज मैं टिफिन को बैग से निकालना भूल गया अब ये ही खा लेता हूँ ।

निवान खुशी-खुशी बासी खाने को खा लेता है क्योंकि गरीब परिवार मे जन्म लेकर वह खाने की अहमियत समझता था । इसलिए उसको जैसा भी खाना मिलता था वह खा लेता था ।

वह खाना खाकर वापस से रसोई मे चला जाता है और फैले हुए खाने को समेट कर बाहर रख देता है और झूठे बर्तनो को साफ करके फिर से पढ़ाई करने बैठ जाता है ।

तभी वाणी दुबारा उसके पास आ जाती हैं और बोलती है ।

वाणी :- प्यार से बोलते हुए,,,भईया चलो ना मेरे साथ खेलने।

निवान :- काम करते हुए,,,,,,नही मुझे स्कूल का काम पूरा करना है तू अपने आप कुछ भी खेल ले ।

वाणी :- मुँह बनाकर बोलती है,,,,,ठीक है मत खेलो ।

तभी निवान वाणी को उदास बैठा देख पूछता है ।

निवान :- वाणी तूने स्कूल का काम कर लिया  ?

वाणी :- हाँ भईया मैंने काकी के घर ही कर लिया था ।

निवान :- अच्छा चल झूठी जा फिर अपनी कॉपी दिखा ।

वाणी अपना बैग लाकर निवान को दे देती हैं । निवान वाणी का बैग चेक करके जैसे ही उसकी चैन लगाने जा रहा होता हैं । तो उसको वाणी के बैग मे एक किताब फालतू नजर आती है

जो वाणी की नही बल्कि निवान की पुरानी किताब थी । वह उस किताब को निकाल कर जैसे ही रखने लगता है उसे गीतिका की बात याद आ जाती है ।

वह पढ़ाई के नाम से कितनी खुश थी निवान उस किताब को गीतिका को देने के लिए अपने बैग मे रख लेता है और वाणी से बोलता है ।

निवान :- वाणी चल जल्दी काकी के घर चलते है काफी रात हो गई वही सो जाएंगे ।

वाणी :- लेकिन भईया हम वहाँ क्यों सोने जाएंगे हमारा घर तो ये है।

निवान :- हम अकेले है और माँ को भी आने मे शायद देर हो जाएगी इसलिए वही सोएँगे ।

वाणी :- फिर से पूछती है,,,,,,,,,,, लेकिन भईया माँ कहाँ है ?

निवान :- ( थोड़ा अकड़ से ) माँ जरूरी काम से गई है अब तू चल जल्दी ।

वाणी :- ठीक है चलो,,,,,,।

निवान जैसे ही आगे जाने लगता है । वाणी उसको फिर रोकते हुए बोलती है ।

वाणी :- रूको भईया लेकिन आपने अपने स्कूल का काम तो पूरा ही नही किया ।

निवान उसको गुस्से से घूरते हुए बोलता है ।

निवान :- चिढ़चिढ़ाते हुए,,,,,,,,, अरे हाँ मेरी माँ मैंने स्कूल और घर दोनो का काम कर लिया । तुझे चलना है तो चल वरना मै जा रहा हूँ ।

निवान की यह बात सुनकर वाणी भागते हुए निवान के पास जाती है और बोलती है ।

वाणी :- निवान भईया रुको मैं आ रही हूँ ।

निवान फटाफट से लाईट बंद करके अपने घर पर ताला लगा कर मंजरी काकी के घर चला जाता है और वह दोनो वहाँ जाकर सो जाते है ।

अगली सुबह,,,

सुबह के 6:00 बज चुके थे । प्रकृति भी रोज की तरह अपने काम मे जुट चुकी थी । वही,,,,,,,,,,

To Be Continue Part - 8