childhood and maturity
बचपन, ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत पन्ना जहां शायद हम बड़े होने के बाद एक बार जरूर ख्वाहिश करते हैं उसमें वापस लौटने की ।
जहां कोई बन्धन ना हो , किसी को किसी से आगे बड़ने की चाहत ना हो बस बेफिक्री से हर चीज करे। जब हम बचपन में जी रहे होते हैं तब हम सोचते हैं शायद जब हम बड़े होंगें तब हमारी ज़िन्दगी ज्यादा अच्छी होगी लेकिन नहीं बचपन में हम ज़िन्दगी के मज़े लेते हैं
पर बड़े होने पर ज़िंदगी हमारे मज़े लेती हैं।।
बचपन में ख्वाहिश होती हैं और बड़े होते ही
वो समझौतो में तब्दील हो जाती है।।
बचपन में हम हर छोटी छोटी बातों पर रो देते हैं ताकि जिस चीज के लिए रो रहे हैं वो हमें मिल जाएं लेकिन बड़े होने पर हम रोते तो है लेकिन छुप छुप कर क्योंकि हमें समझदारी ये डर लाती हैं कि लोग वजह पूछेंगे रोने की तो हम उसका क्या जवाब देंगे।।
© Deepali gangwar
जहां कोई बन्धन ना हो , किसी को किसी से आगे बड़ने की चाहत ना हो बस बेफिक्री से हर चीज करे। जब हम बचपन में जी रहे होते हैं तब हम सोचते हैं शायद जब हम बड़े होंगें तब हमारी ज़िन्दगी ज्यादा अच्छी होगी लेकिन नहीं बचपन में हम ज़िन्दगी के मज़े लेते हैं
पर बड़े होने पर ज़िंदगी हमारे मज़े लेती हैं।।
बचपन में ख्वाहिश होती हैं और बड़े होते ही
वो समझौतो में तब्दील हो जाती है।।
बचपन में हम हर छोटी छोटी बातों पर रो देते हैं ताकि जिस चीज के लिए रो रहे हैं वो हमें मिल जाएं लेकिन बड़े होने पर हम रोते तो है लेकिन छुप छुप कर क्योंकि हमें समझदारी ये डर लाती हैं कि लोग वजह पूछेंगे रोने की तो हम उसका क्या जवाब देंगे।।
© Deepali gangwar