...

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रस्म ए मोहब्बत ❤️
तुम तो खुद इक ग़ज़ल हो
साज़ सुनाकर क्या करना

तुम मेरे थे मेरे हो मेरे ही रहोगे
दुनिया को बताकर क्या करना

साथ निभाएंगे मोहब्बत में एक दूसरे का
ये रस्में निभाकर क्या करना

तुम तो खफा भी बहुत अच्छे लगते हो
फिर तुम्हें मनाकर क्या करना

बेपनाह मोहब्बत है तुमसे "विकास" को
अब ये बात "खुशी" से छुपाकर कर क्या करना

मिल गया है खुदा मुझे जबसे साथ तेरा मिला है
नज़ाकत सी है तेरी हर इक अदाओं पे अदाओं को भी तुझ से गिला है
तेरी शोख अल्हड़ सी शैतानियां उनपर ये नादानियां
तेरी शोखियों को भी इल्ज़ाम तेरी शरारतों से ही मिला है
चढ़ गया गहरा रंग तुझ पे मेरी मोहब्बत के रंगों का "खुशी"
नफासत सुर्ख लाल पंखुड़ियों को तेरी सादगी से मिला है

क्या ख़ूब मंजर होगा क्या राहत होगी
जन्नत का सुकून गोद में जन्नत के करीब होगी
हम तो हर जनम सिर्फ़ तेरे ही होना चाहेंगे
वो मौत भी बड़ी हसीन होगी जो तेरे बाहों में नसीब होगी

© विकास - Eternal Soul✍️