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पुरुष (Men):- Reel v/s Real
आज की सोशल मीडिया और फिल्मी दुनिया में पुरुष की छवि कुछ इस प्रकार बनाई गयी है, कि अगर वह नशा करता है, दोस्तों के साथ गाली-गलौच से बात करता है, लड़कियों के सामने स्टायल मारता है, तभी वह एक सच्चा पुरुष है, वरना उसे पुरुषों के समान सम्मान मिल ही नहीं पाता।

आज के समय में सोशल मीडिया में सबसे ज्यादा चलने वाला एक हैसटैग है - "द बॉयस् (THE BOYS)" । इस तरह की रील्स में अक्सर दिखाया जाता है कि कैसे दो दोस्त एक दूसरे के साथ गाली-गलौच किए बिना बात नहीं करते, कैसे एक लड़का किसी लड़की को पलट कर जबाब देता है या उसका अपमान करता है, कैसे दोस्त कोल्डड्रिंक आदि में शराब आदि नशीले पेय पदार्थ मिलाकर दूसरे को पिलाते हैं। ऐसी और भी बहुत रील्स‌ आप लोगों ने भी देखीं होंगी। पर क्या लड़के सिर्फ इतना ही करने के लिए पैदा हुए हैं?

इसके साथ ही एक और हैसटैग चलता है - "मैन विल वी मैन (MAN WILL BE MAN)" । जिसमें अक्सर यही दिखाया जाता है कि कैसे एक पुरुष के दिमाग में किसी पराई स्त्री को देखकर हमेशा संभोग की इच्छा जाग जाती है, वह उस स्त्री को पाने के लिए झूठ बोलता है, उसे अपने जाल में फंसाने की कोशिश करता है।
और अगर फिल्मों और सीरियल्स (धारावाहिकों) की बात की जाए, तो "एनिमल (Animal)", "केजीएफ (KGF)" जैसी फिल्मों और "भाभी जी घर पर हैं" और "मे आई कम इन मैडम (May I come in Madam)" जैसे धारावाहिकों में इस तरह से पुरुष की डार्क साइड और उसकी जिस्म लोलुपता को दिखाया गया है कि एक पुरुष को धोखा देना, मारपीट करना, अपनी पड़ोसन या मैडम पर लाइन मारना, इसके अलावा कुछ नहीं आता। पहले की फिल्मों में भी अगर किसी पड़ोस वाली से प्यार दिखाया जाता था तो वो या तो कुंवारी होती थी या कोई विधवा स्त्री होती थी, किंतु आज के समय में इनमें शादीशुदा औरतों के पीछे पुरुष को पागल दिखाया जाता है, जैसे कि "तारक मेहता का उल्टा चश्मा" के जेठा और बबीता। पर क्या पुरुषों की भावनात्मकता स्त्री के जिस्मों तक ही है?

चलिए थोड़ा हकीकत पर भी नजर डाल लेते हैं।

हां आज के समय में सोशल मीडिया के हैसटैग "द बॉयस् (THE BOYS)" से प्रभावित अधिकांश पुरुष अक्सर गाली-गलौच और नशे आदि के बारे में ही बात करते हैं। पर मैंने कभी अपने पापा, चाचा, दादा या उनकी उम्र के किसी व्यक्ति को अपने दोस्तों, रिश्तेदारों से गाली-गलौच के द्वारा बात करते हुए नहीं देखा। ना हीं उनमें इस तरह का व्यवहार है कि यदि आप नशा नहीं करते तो आप पुरुष नहीं हैं? उनको मैंने हमेशा दूसरे की इच्छाओं और विचारों का सम्मान करते हुए देखा है। इससे यह बात तो साबित होती है कि गाली-गलौच से बात करना या नशा करना, आपकी पसंद और सोच में शामिल है यह पुरुष होने की निशानी नहीं है।

हां यह सच है कि आज के समय में कुछ अपराधी पुरुषों ने जिस्म लोलुपता में रिश्तों को तार तार करते हुए, पुरुषों के ऊपर कभी न मिटने वाला दाग लगा दिया है, परंतु इससे पूरा पुरुष समाज एक जैसा नहीं हो जाता। मैंने गांव में अक्सर देवर-भाभीयों और पड़ोसी स्त्री-पुरुषों के बीच में होने वाले हंसी-मजाक को सुना है और अपनी आंखों के सामने उन्हें बात करते हुए देखा है। मैंने देखा है कि कैसे वो बातों-बातों में एक दूसरे की हंसी उड़ाते हैं, पर कभी मैंने उनके मध्य में असभ्य व्यवहार नहीं देखा। इसका मतलब यही है कि आज के इन धारावाहिकों में एक पवित्र रिश्ते को असभ्य तरीके से दिखा कर पुरुषों की आत्मनियंत्रण क्षमता को कमजोर बताने की कोशिश की गयी है।
इस तरह के धारावाहिकों/फिल्मों में यह भी दिखाया जाता है कि कैसे पुरूष अपनी पत्नी की फ़िक्र न करते हुए पराई स्त्री पर डोरे डालने का प्रयत्न करता है, किंतु कुछ समय पहले ही मैं अस्पताल के एक वार्ड में कुछ समय बिता कर आया हूं, वहां मैंने जमीनी हकीकत देखी, कि कैसे पुरूष अपनी पत्नी के लिए सबकुछ छोड़कर दो-चार दिन लगातार बिना अपने स्वास्थ्य की परवाह किए, अपनी पत्नी का ख्याल रखता है। उस समय उसके मन में यह नहीं होता कि नर्स कैसी है या बाजू वाली स्त्री कैसी लग रही है? उसके मन‌ में उस समय एक ही प्रार्थना रहती है कि हे भगवान! मेरी पत्नी को स्वस्थ करदो।

अतः आज के समय में गाली-गलौच में बात करना और पड़ोस में रहने वाली शादीशुदा महिलाओं के प्रति असभ्य विचार रखना, हमारे मौजूदा पुरुषों की कमजोरियां नहीं हैं किन्तु मेरे नजरिए में सोशल मीडिया और फिल्मों/धारावाहिकों में होने वाले इस तरह के प्रचार धीरे-धीरे हमारे युवकों के मन में घर बना रहे हैं और हो सकता है कि आने वाली पीढ़ियां इसी तरह का व्यवहार करें, किंतु यदि ऐसा होता है तो मनुष्य के द्वारा वर्षों में बनाया गया यह सभ्य समाज धीरे धीरे नष्ट हो जाएगा।



© Aniket Sahu


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