...

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एक बेवकूफियाना सोच...
देख भोर की चहलकदमियां
हँसी खुशी और किलकारियां
मैं भी निकल प्रथम रश्मी संग
आनंदित अब हो लिया करता हूं..

सुबह की मधुमस्त ठंडी सुहानी ये बयार
ताज़गी भर देती है अंतस में जा कहीं
अब दिन सुहाना हो जाता है
चेहरा मुस्कुराता हुआ अपना नज़र आता है

देखने वाले इन तब्दीलियों पर गौर फर्माते हैं
कारण वे बेवजह आए इस परिवर्तन का जानना चाहते हैं
ये इसलिए आया है
क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट नौकरी करने
वालों को भी पैंशन का हकदार बताया है...

अब जिंदगी ६० बाद भी जीनी है
ज़वानी में बोए पेड़ का कुछ मधुर फल फुर्सत में बैठ कर खाने को मिलेगा...
सोच ये की बुढ़ापा भी ठीकठाक कटेगा
६० बाद भी ज़िंदगी दोबारा मिलेगी
ख़ुद में ख़ुद के इस पागलपन के लिए मुस्कुरा लेता हूं
६० बाद जिंदगी के भी कुछ सपने संजो लेता हूं..

अब बोझ हम भी ना समझें जायेंगे
हमें भी जियाये रखने को नई पीढ़ियां आगे आयेंगी..
उम्र के उस पढ़ाव में कुछ तो साथ निभाएंगी
अब हड्डियां हमारी भी ऋषि धधीच की हुई
ना रहने बाद भी हमारे..
तारीख पहली को ही सही बीबी को पैंशन कुछ तो मिलेगी
इसी बहाने कुछ तो हमारे ना रहने बाद वो
हमें याद तो करेगी..

शायद एक बेवकूफियान सोच...
© दी कु पा