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गरीब की संपत्ति ( कहानी )
भीमराव : सब्जी ले लो, गोभी , भिड़ी , बैगन
आज का दिन भी ऐसे चला गया नही बिकी पूरी तरकारी । जब पुरी सब्जी बिकती थी तब मुश्किल से कही गुजारा होता था। अब घर जाकर क्या होगा ? कमरे का किराया भी तो देना था । पिछले तीन महीने से किराया नही दिया भीमराव समझता था कि मकान मालिक को भी पैसे की जरूरत होती है पर बेचारा करता क्या ? सब्जी पूरी बिकी तो बिकी नही तो इतना बचता कहाँ था कि वो अपना ओर अपने परिवार का पेट पाल सके। यूँ तो परिवार मे भी कौन से ज्यादा लोग थे । वो और उसकी बीबी साथ मे छोटी छुटकी । छुटकी को यह नाम भीकू ने दिया था शायद वो देखने मे बहुत छोटी थी इसलिए वरना घर के लोग तो उसे पहले नन्ही कहकर बुलाते थे । नन्ही बोलो या छुटकी क्या फर्क पढता है । थी तो वो सबकी लाडली । भीकू का नाम ध्यान मे आते ही उसका चेहरा गुस्से से तिलमिलाने लगा। उसके बारे मे सोचते सोचते वो चाल में ठेले को किनारे लगाकर अपने कमरे की तरफ बढा। दिन भर की थकान की वजह से उसको अपनी चाल एक हवेली की तरह लग रही थी और अपना छोटा सा कमरा एक महल ।
भीमराव जल्दी से अपने कमरे के भीतर घुस जाना चाहता था लेकिन यह क्या ? उससे भी तेज गति से मालिक मकान उसकी तरफ बढा । भीमराव ने उसे अपनी नाजुक हालात की जानकारी दी और भगवान का भी वास्ता दिया लेकिन आज मकान मालिक कुछ सुनने के मूड मे नही था उसने उसे जल्द से जल्द कमरा खाली करने को कहा और अप्रिय भाषा का भी प्रयोग किया । थोड़ी देर में उसका दोस्त करीम भी वहाँ पहुँचा और किसी तरह मालिक मकान को समझा बुझा कर रवाना किया और कमरा खाली करने के लिये भी थोड़ी मोहलत और माँग ली ।
इतनी देर मे ही भीकू वहाँ दौड़ता आया उसके एक हाथ मे गुली- डंडा था और दुसरे हाथ मे पतंग ।
बस दिन गुजराने के लिए भी उसके यह दो ही शौक काफी थे । भीकू भीमराव की बहन का लड़का था और वह उसकी बुढ़ी बहन के छह बच्चों मे से एक था । उसे बहन ने पालने के लिए भीमराव के यहाँ रखा था । दिन भर स्कूल न जाकर गुली डंडा खेलते रहना और शाम को कटी हुई पतंग को सड़क पर भाग भाग कर लुटना , फिर लूटी हुई पतंगे उड़ाना यह भीमराव के गुस्से और परेशानी का भी एक बहुत बड़ा कारण थे।
अचानक एक दिन करीम उनके घर आया। वह जल्दी मे था उसने भीमराव को बताया कि वह जिस फ़ैक्टरी मे काम करता है वहाँ मालिक को एक आदमी की सख्त जरूरत है उसने मालिक से भीमराव के नाम की सिफारिश की है । भीमराव तो मानों पहले से ही तैयार बैठा था वो तुरंत राजी हो गया और अगले ही दिन से उसने फ़ैक्टरी जाना शुरू कर दिया ।
अब उस मालिक मकान से वह जल्द छुटकारा पाना चाहता था और वो दिन भी आ गया । भीमराव के पास कोई ज्यादा समान न था उसके लिए तो उसका एक पलंग ही बड़ी दौलत थी वो ही उसकी संपत्ति थी वो गया और बढ़ई ले आया। पलंग पुराने जमाने का था जिसके दोनों पल्लो को खोले बिना कही नही भेजा जा सकता था । इन पल्लो के एक सिरे को दुसरे सिरे से जोड़ने के लिए लकड़ी की दो फट्टी लगी थी । बढ़ई ने पूरे पलंग को खोला और भीमराव ने नया कमरा जो रहने के लिये लिया था वहाँ पलंग और बढ़ई के साथ भीकू को भी भिजवा दिया । उसने भीकू से कहा कि वहाँ जाकर तुम यह पलंग जुडवा लो । नये कमरे पर पहुंचकर बढ़ई अपने काम मे लग गया और भीकू पतंग उड़ाने लगा।
अरे यह क्या अचानक भीकू पतंग छोड़ कर बढ़ई की तरफ दौड़ा उसने देखा कि बढ़ई पलंग के दोनों पल्लो को जोड़ने वाली एक लकड़ी को काटकर छोटा कर रहा है । भीकू बच्चा था और बढ़ई के काम से अनजान भी, पर इतना तो समझता था कि जब पलंग खुला तब यह पल्लो के बीच की लकड़ी जितनी थी अब वो छोटी कैसे की जा सकती है ।उसने बढ़ई का हाथ पकड़ लिया और फिर उसे समझा कर पलंग जोड़ने मे मदद् की ।
जब भीमराव को इस बात का पता चला तो वह गद्- गद् हो उठे कि आज निखठू और निकम्मे भीकू ने उनका सबकुछ बचा लिया ।
कई वष॔ बीत गये भीमराव अब बिलकुल अकेले है भीकू अब विदेश मे है उसके फूफा जो वहाँ नौकरी करते थे उनहोंने भीकू को अपने पास बुला लिया लेकिन भीमराव को न जाने क्यो अब भी पलंग पर रात को सोने जाते वक्त भीकू की याद आ जाती है और भीकू की समझदारी के लिये उनकी आँखे भर जाती है ।
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