...

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ऊंचा ओहदा...
ऊँचा ओहदा....

मैं बस में चढ़ गया, मैंने नजर दौड़ाई की कोई सीट खाली मिल जाये, पर अकेली सीट कोई नहीं थी। एक डबल वाली सीट पर समझदार सा दिखने वाला आदमी बैठा था, मैं उसके पास गया।

सरकारी नौकरी लगने के बाद मैं दूसरी बार घर जा रहा था। मुझ पर नौकरी लगने का एक अलग ही घमंड सवार हो रखा था। मैंने पास बैठे व्यक्ति से कहा ,"श्रीमान जी अगर बुरा न मानें तो मैं खिड़की वाली साइड में बैठ जाऊँ ?" वो व्यक्ति जो पहले से खिड़की वाली साइड में बैठा था, उसने मुझे देखा और कहा " श्योर ..."

हम दोनों ने सीटें बदल ली। मुझे लगा कि शायद मेरी नौकरी का रौब मेरे व्यक्तित्व से झलकने लगा है , इसलिए इस आदमी ने मुझे खिड़की वाली सीट बिना किसी ना नुकुर के दे दी।

मुझे लग रहा था कि इसे मेरी नौकरी का पता चलना चाहिए , ताकि और रौब बने मेरा । मैं चाहता था कि काश ! कोई तो ऐसी बात हो जाए, मैं उसे बताने के लिए बेचैन हो रहा था।

अचानक मेरी मनचाही बात हुई , मेरे ऑफिस से बॉस का फोन आया । उन्होंने मुझसे दो तीन बात पूछी,...