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यथार्थ
कोई भी व्यक्ति सीखता है आसपास की घटनाओ से , आपबीती से , दुनियाँ के व्यवहार से , रिश्तों के उतार चढ़ाव से ! आखिर भूत भविष्य वर्तमान ही तो आज तय करता है ! एक लेखा जोखा जिस पर एक व्यक्ति अपना हिसाब चलाता होता है वो भी अनिश्चित सा !

एक समय आता है जब डिग्री डिप्लोमा असफल हो जाता है , रूपया पैसा या जायदाद बेमानी ही जाती है ! रिश्ते नातों की भूमिका नगण्य ! ज़िन्दगी का पाठ अद्भुत है जो आपको वास्तविकता से जोड़ता है ! यक़ीनन मुलम्मे में तन्हा , खुद से लड़ता , खुद को आश्वसन देता , एक राही अनजान तलाश में और जो मिला एक सबक दे गया ! यूँ कहे की तौल गया मोह माया के तराज़ू में !

ये है तो वो नहीं , जितना है वो भी ठीक नहीं ! तुम वो नहीं जैसे सोचा था ! एक अजनबी नज़र जो कभी अपना नहीं समझती !

बीता सो बीत गया और सब पर बीतती है ! माना की आज से कोई मतलब नहीं पर असर गहरा रखती है ! कुछ भूलना पड़ता है तो कुछ जहन में रहती है ! आज एक दिन में नहीं बनता है ! बरसों बरस लगते है खुद को साधने में , खुद को परिस्थिति अनुसार ढालने में !

समंदर की लहरों में अब नाव महत्वपूर्ण है या नाविक ,
साहिल पर आकर पूछते है आखिर तुमने कुछ किया तो नहीं ! लेकिन यात्रा तो अनवरत है , हमराही भी यहाँ और सन्नाटे सी तन्हाई भी ! यथार्थ तो खुद है खुद में !

© "the dust"