...

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पहले पहले मोहब्बत की खुमारी..
वो अपनी खिड़की पर खड़ी
मैं अपनी छत की मुंडेर पर खड़ा
दोनों एक दूसरे का इंतजार करते हैं

नहीं जानते हैं एक दूसरे को
फिर भी दोनों एक दूसरे की मुस्कान पर मरते हैं
मोहब्बत है कशिश है प्यार है क्या है पता नहीं
पर दोनों एक दूसरे के दीदार के लिए तरसते हैं

बेचैन से रहते हैं दोनों एक दूसरे को देखे बिना
आंखों ही आँखों में एक दूसरे के इशारों को
एक दूसरे के अनकहे ज़ज्बातों को यूं ही समझ जाते हैं
कहते कुछ भी नहीं
पर देख एक दूसरे को ख़ामोशी में ही बहुत कुछ कह जाते है

रहते हैं ख्यालों में वो एक दूसरे के दिन-रात
ना भूख लगती है ना लगती है प्यास

बस एक मुस्कराता हुआ चेहरा उनका
इस दिल-ऐ-बेचैन को सुकून-ऐ-आराम दिया करते हैं
शायद इसी को पहले पहले मोहब्बत की खुमारी कहते हैं...


© Jazbaat-e-Dil