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रूकती कहाँ है आख़िर ज़िन्दगी...?
कॉलेज की बस में चढ़ते ही उस दिन समीर को सब कुछ नया नया सा लग रहा था। नया लगता भी क्यों न वो दिन ही कुछ ऐसा था क्योंकि उस दिन तारीख थी 14 फ़रवरी जिसका मतलब था दुनिया का हर इंसान मोहब्बत की सालगिराह मनाने वाला था। समीर अपनी सीट पर बैठने के बाद बस में इधर उधर नज़र दौड़ाने लगा। आज उसके दोस्त उसके पास वाली सीटों पर बैठे तो थे पर उन सबका मन आज बस की दूसरी सीटों पर था। इसे उम्र का दोष कहें या ज़माने में अपनी साख की ज़रूरत आज बस में मौजूद हर लड़का हर लकड़ी खुद को एक ऐसे युद्धक्षेत्र में खड़ा देख रहे थे जहाँ उनका जीतना जैसे उनकी ज़िंदगी का सबसे हसीन तोहफा होता। इन सब बातों से ध्यान हटा कर समीर अपनी मदमस्त ज़िन्दगी के बारे में सोच कर एक अलग ही दुनिया में खो गया था।


कुछ देर बाद जैसे ही बस के ड्राइवर ने ब्रेक लगाए तो समीर ने खुद को कॉलेज के अंदर बस पार्किंग ग्राउंड में पाया। उसकी बस के सभी बच्चें बस उतर कर जा चुके थे। आज उसके दोस्त भी उसे अकेला छोड़ कर अपनी अपनी प्रेम मंज़िल की तरफ बढ़ गए थे। बस से उतर कर ज्यों की समीर कॉलेज में जाने के लिये कुछ कदम चला ही था कि अचानक उसे कॉलेज के बगीचे में एक गुलाब का फूल खिला हुआ दिखाई दिया। समीर से फूलों को कितना लगाव था इस बात को उसके दोस्त ही नहीं उसके साथ के बाकी सहपाठी भी जानते थे जिनमें लड़कियाँ भी शामिल थी। और दिनों की तरह फूल को देखकर उसी तस्वीर लेने के बजाये समीर ने उस फूल को तोड़कर अपने पास रख लिया और अपनी क्लास में जाकर बैठ गया।


क्लास में प्रोफेसर के आने से पहले समीर ने उस गुलाब को निकाल कर अपने सामने डेस्क पर रख लिया। समीर द्वारा इस तरह फूल को डेस्क पर रखने पर पास में बैठे उसके दोस्त अमित को कुछ अजीब सा लगा क्योंकि समीर ने इस तरह की कोई भी हरकत आज से पहले नहीं की थी। तभी अमित के दिमाग में न जाने क्या ख़्याल आया उसने समीर से कहाँ कि आज का दिन बहुत खास है और आज तू भी गुलाब लाया है तो अगर तुझ में हिम्मत है तो क्लास में मौजूद किसी भी लड़की को अपनी प्रेमिका बना कर दिखा। कुछ देर तक समीर को इसी तरह छेड़ने के बाद अमित ने समीर से फिर पूछा कि ये गुलाब वह किसके लिये लाया है तो समीर ने गुस्से में आकर तुरंत ही जवाब दिया की यह गुलाब वह उसके आगे वाली सीट पर बैठी लड़की अफ़साना के लिये लाया है। समीर के मुँह से सुने इन शब्दों पर अमित को थोड़ी देर यकीन ही नहीं हुआ। दो चार बार पूछने पर भी जब समीर ने अपना जवाब न बदला तो अमित ने छट से उनके आगे वाली सीट पर बैठी अफ़साना और सानिया से वैसे ही समीर के शब्दों को कह दिया। जब तक समीर कुछ समझ पाता दोनों लड़कियाँ समीर को टेड़ी निगाहों से देखने लगी। जिस तरह समीर को इस बात का यकीन नहीं था कि अमित उसकी बातों को उन दोनों लड़कियों से कह देगा शायद उसी तरह उन दोनों लड़कियों को भी यकीन नहीं था कि समीर इस तरह की बात बोल सकता है।

कुछ देर बाद जब सब सामान्य हुआ तो समीर क्लास से बाहर चला गया। जब वह क्लास में वापिस आया तो उन तीनों के चेहरे पर एक अलग ही मुस्कुराहट थी। समीर आकर जैसे ही अपनी सीट पर बैठा अमित उससे बोल बैठा बाहर कोई तेरा इंतज़ार कर रहा है। समीर को अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है क्योंकि समीर को अपनी पढ़ाई के अलावा अगर किसी चीज़ में दिलचस्पी थी तो वह था दोस्तों के साथ घुमना फिरना या खेलकूद में हिस्सा लेना। अमित के बहुत कहने पर समीर क्लास के बाहर गया जहाँ अफसाना पहले से उसका इंतज़ार कर रही थी। समीर कुछ दूरी के फासले पर खड़ा हो गया और अफ़साना को समझाने की कोशिश करने लगा कि जो कुछ भी अभी हुआ था वह एक गलतफहमी थी पर शायद अफ़साना को ये गलतफहमी कुछ ज्यादा ही पसंद आ गई थी उसने तुरंत की समीर को चुप करवाया और उससे अपने इश्क़ का इज़हार कर दिया। इससे पहले समीर कुछ बोलता अफ़साना वहाँ से चली गई। पूरी रात सोचने के बाद और अपने दोस्तों केे समझाने के बाद उसने फ़ैसला किया कि वह अफ़साना के प्यार को क़ुबूल करेगा। अगले दिन समीर ने कॉलेज के बगीचे से फिर एक गुलाब का फूल तोड़ा और आज उसने उस गुलाब को अपने पास रखने की जगह उसे अफ़साना को देते हुए उसके इश्क़ के इज़हार में अपने इश्क़ का इज़हार किया।


अब दोनों की ज़िंदगी में एक नया रंग घुल था। जो लड़का लड़की कभी एक दूसरे से बात भी नहीं करते थे आज उनके इश्क़ के किस्से पूरे कॉलेज में मशहूर हो गए थे। समीर और अफ़साना की प्रेम कहानी रोज़ परवान चढ़ती जा रही थी। धीरे धीरे इसी तरह कॉलेज के खत्म होने तक दोनों की प्रेम कहानी अच्छे से चलती रहीं। पर कॉलेज खत्म होने के कुछ समय बाद दोनों के रिश्ते में कड़वाहट आने लगीं थी। समीर कुछ समझ नहीं पा रहा था की यह सब क्यों हो रहा है। कॉलेज के दिनों में अगर समीर कभी गुस्सा करता या नाराज़ हो जाता तो अफ़साना उसे मना लेती थी। मगर अब तो नज़ारा ही कुछ और था। अब अफ़साना समीर के गुस्सा करने पर उसे समझाने की जगह उससे बात ही करना बंद कर देती थी। शुरू शुरू में समीर को ये यह सब सामान्य लगता था पर अब उससे अफ़साना के बिना रहना मुश्किल हो गया था। उसने फैसला किया वह अपने इस रिश्ते को समाज के सामने एक नाम देगा उसने अफ़साना के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। अफ़साना ने उससे थोड़ा समय मॉंगा अपना जवाब देने के लिये। कुछ रोज़ बाद एक दिन अचानक अफसाना ने समीर को उसके फ़ोन पर मैसेज करके उनके रिश्ते को खत्म करने की बात कहकर अपना फ़ोन बंद कर लिया। समीर ने अफसाना से बात करने की बहुत कोशिश की उसने अफ़साना की सबसे अच्छी सहेली सानिया से भी मदद माँगी पर सब मेहनत बेकार जा रही थी। बहुत दिनों तक अफ़साना से बात करने का कोई ज़रिया न दिखने पर समीर अपनी ज़िंदगी की भागदौड़ में लग गया और उसे पता ही नहीं चला कब अफ़साना उसके लिये एक अफ़साना बन गई।


कुछ सालों बाद यूँ ही बातों बातों में एक दिन समीर सानिया से पूछ बैठा की उसकी सहेली कैसी है तो सानिया ने उसे बताया कि अफसाना की अभी कुछ रोज़ पहले ही शादी हो गई है। समीर को यह सुन्नते ही बड़ा धक्का सा लगा। उसने जैसे ही पलकें बंद की उसे अफ़साना और उसके बीच हुई प्यार भरी बातें और सब कसमें वादें याद आ गए और साथ ही याद आ गया वह दिन भी जब आख़िरी बार अफसाना ने उसे मैसेज करके अपना रिश्ता खत्म करने की बात बोली थी। इन्हीं सब बातों को याद करते करते समीर के मन में ख़्याल आया कि "रूकती कहाँ है आख़िर ज़िन्दगी"।


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