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मो टी रोटी
मोटी रोटी

कब से कह रहा हूँ !! एक बार तो सम्भाल ले आकर अपने बाप को । सिर्फ़ माँ मरी है तेरी , बाप अभी ज़िंदा है । देख ना मेरा क्या हाल हो गया । कुछ भी ढंग का नहीं मिलता । -समीर जी ने अपनी बेटी इशा को फ़ोन पर ही सुनाना शुरू कर दिया ।

ईशा की माँ को मरे हुए अभी तीन महीने ही हुए थे । तब वो क़रीब पंद्रह दिन रुकी भी थी । मुंबई से दिल्ली रोज़ रोज़ आना मुमकिन भी नहीं है ।

पर फ़ोन पर रोज़ तीन बार घर में बात कर ही लेती है । २ बार पिताजी से और एक बार अपनी भाभी श्रुति से ।
समीर जी दिन में दो बार बात करते ,उसमें १० बार अपनी बहू श्रुति पर खीज निकालते ।
-तेरी माँ थी , तब भी रोटी यही बनाती थी तब इसे अपनी सास का डर था , कितने पतले फुलके बनाती थी । अब देखो इसे घास काटती है । मोटी रोटी बना कर पटक देती है । हाँ भई कौन टोकने वाला है अब ।
-दो टाइम का दूध एक बार कर दिया
मैंने ,वो भी इससे तमीज़ से नहीं दिया जाता । पता नहीं क्या मिलाने लग गयी । मैं इसके जादू टोने में नहीं आने वाला । देख लूँगा सबको ।

-रोज़ एक नयी शिकायत । सुन सुन कर ईशा का भी दिमाग़ ख़राब होने लगा था । वैसे श्रुति उसकी बहुत अच्छी दोस्त भी थी । २० वर्ष हो गये श्रुति को उसकी भाभी बने । दोनो हमेशा हमजोली की भाँति रही है । वो जानती है श्रुति का स्वभाव । कितनी मिलनसार और केयर करने वाली है । माँ की १० वर्षों तक जो उसने सेवा की वो भी किसी से छुपी नहीं है । तब तो जी भी उसके गुण गाते ना थकते । पर अब ….
अब रोज़ रोज़ श्रुति के बारे में सुन सुन कर वो भी उकता सी गयी है । कहीं भाभी सच में बदल तो नहीं गयी ।
-देख ले तेरी भाभी को कितनी बार कहा है मेरे पैरो में दर्द है फिर भी रोज़ मुझे दूध लेने भेज देती है । अच्छा भला देने आता था दरवाज़े तक लेकिन महारानी ने उसे मना कर दिया । हाँ भई उसे २४ घंटे का नौकर जो मिल गया । बता रहा हूँ मैं मेरी हालत बहुत बुरी हो चुकी है इस घर में । तू भी आकर मत सम्भाल ।
और हमारे लाठ साहब...