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लहरें और साहिल
जीस प्रकार से समुंदर की लहरों से खेलने के लिए तुम उतावली हो रही थी,आज मैने अपनी आँखों से वो अनंत ख़ुशी तुम्हारे चेहरे पर देखीं…मेरा मन प्रसन्न हो रहा था…. छेडने की तुम्हारी आदत यहाँ भी बदस्तूर जारी थी…..लहरों संग खेलना…..साहिल पर बैठकर अपनी उँगलियों से गीली रेत पर खूद का नाम लिखना…..अपने आप में तुम कितनी खुश थी नं…..ऐसे ही अपने आपको ढूँढो….खूद को पहचानों….खूद में खों जाओं……दुनिया की परवाह ना करो……हाथों को फैलाकर पंख बनाओ…..उड चलों….. जहां तक संभव हो….जब तक मन हो…..स्वच्छंद विचरण करो……अब से तुम्हें कोई ना टोकेगा…..कोई ना रोक सकेगा……यारा अब अकेली नहीं है….मै सदैव तुम्हारे संग रहूँगा….हमसाया बनकर……मेरी जीद से तो तुम भंलीभांती परीचित हो ही…..एक बार तुम्हारा हाथ थाम लिया….अब तो ईश्वर भी हमारे प्रारब्ध को बदल नही सकता….. चल पडों…. मै संग था,हू और सदैव रहूंगा….. मेरे यारा का हाथ थांमें…
© ख़यालों में रमता जोगी