...

11 views

हकीकत
तीनों सहेलियां ,जो बचपन से साथ पले, बड़े, एक दूसरे के परछाई बनकर रहे , न जाने कब विवाह के बंधन में बंध गए। सालों गुजरते गए। कभी - कभार कहीं से कुछ- कुछ हाल - चाल एक दूसरे का मिल जाया करता था।
उस समय न ही कोई माध्यम था कि घर बैठे एक दूसरे का खैरियत पूछे ।बस एक जरिया था पत्र , चिट्ठी का पर तीनों अपने पारिवारिक कार्य में इतने व्यस्त थे कि सहेलियां मानस पटल पर यदा- कदा ही दस्तक देता था।
समय बीतता गया। सभी के बच्चे बड़े होकर अपने- अपने घर- परिवार व नौकरी में व्यस्त हो गये। सहेलियां भी अब बचपन की यादों में लौटने में विवश हो रहे थे। कहीं से जुगाड़ बनाकर तीनों आपस में एक दूसरे के सम्पर्क में आते हैं। फिर मिलने- जुलने की बातें होने लगी और अपने बचपन के आंगन में मिलने का निर्णय लिया जाता है।
तयशुदा कार्यक्रम के तहत मन में हजारों उमंग लिए तीनों वर्षों बाद एक दूसरे से मिलकर वहीं कुछ क्षणों के लिए बचपन में लौट आते हैं। बातचीत, घूमने फिरने का दौर काफी दौर चलने के बाद वस्तुस्थिति में आते हैं।
तीनों में एक ने अपनी अमीरी का प्रर्दशन करने में कहीं से कोई कसर नहीं छोड़ी। बातों- बातों में अपनी अमीरी का बखान करने के लिए सबसे अच्छा मौका शायद यही मिला था।
दूसरी भी इतनी कोमल थी कि एक कदम चलने में थकावट महसूस कर रही थी। समय- समय पर पति हाल-चाल पूछने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे।अब तीसरे वाली तो बस में सफर कर पहुंची थी ।कुछ देर तक उन दोनों ने बड़ी हैरानी जताई आज के युग में बह का सफर? बड़ी ही विशंगति है हमारे सोच में । वह मन ही मन सोचने लगी बस का सफर क्या जानो? कदम रखते ही कंडक्टर के आंखों में खुशी का इजहार , भांति-भांति के लोगों से परिचय, और न जाने कितने लोगों का भरण-पोषण होता है एक बस के चलने से। शायद वह अपने जगह बहुत खुश थी।पर उसके सहेलियों ने कम आंका।
समय के साथ- साथ सब बदल जाते हैं।दूर से ही अपने जज्बातों को सहेजने में ही भलाई है। यादों में जीना सरल है हकीकत का धरातल ऊबड़-खाबड़ होते हैं। सिवाय दर्द के कुछ नहीं।
रीता
आपबीती