हकीकत
तीनों सहेलियां ,जो बचपन से साथ पले, बड़े, एक दूसरे के परछाई बनकर रहे , न जाने कब विवाह के बंधन में बंध गए। सालों गुजरते गए। कभी - कभार कहीं से कुछ- कुछ हाल - चाल एक दूसरे का मिल जाया करता था।
उस समय न ही कोई माध्यम था कि घर बैठे एक दूसरे का खैरियत पूछे ।बस एक जरिया था पत्र , चिट्ठी का पर तीनों अपने पारिवारिक कार्य में इतने व्यस्त थे कि सहेलियां मानस पटल पर यदा- कदा ही दस्तक देता था।
समय बीतता गया। सभी के बच्चे बड़े होकर अपने- अपने...
उस समय न ही कोई माध्यम था कि घर बैठे एक दूसरे का खैरियत पूछे ।बस एक जरिया था पत्र , चिट्ठी का पर तीनों अपने पारिवारिक कार्य में इतने व्यस्त थे कि सहेलियां मानस पटल पर यदा- कदा ही दस्तक देता था।
समय बीतता गया। सभी के बच्चे बड़े होकर अपने- अपने...