Writco के कुछ अनुभव ...
आजकल Writco पर
कुछ ज्यादा ही वक्त गुजरने लगा है। वास्तव में पढ़ने का शौक पहले से ही रहा है। अच्छा साहित्य अभिभुत सा कर देता है।समय मानों पंख लगा कर उड़ जाता है। इसकी वजह है Writco के लेखक / लेखिका और उनकी रचनाएं। थोड़े ही दिनों में मैं उनका प्रशंसक बन गया हूं।
बस समय मिलते ही मैं उनकी रचनाओं में खो जाता हूं।
कल इसी तरह Writco पर खोया हुआ था कि अचानक एक कविता के शीर्षक पर नजर गई।
" आखिर क्या है जिंदगी ..."
अरे ! इसी विषय पर तो मैंने भी कविता लिखी थी ! हां, हां, बिल्कुल वही शीर्षक है ! पर यह कविता किसी और कवियत्री की थी।
कविता तत्क्षण पढ़ गया। कविता वास्तव में बहुत सुंदर थी। मैंने अपनी कविता में " आखिर क्या है जिंदगी" के जबाव में कुछ प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी जैसे एक मोड़ है, एक होड़ है , एक अरदास है, एक विश्वास है.. आखिर क्या है जिंदगी ?
पर उस कवियत्री ने अपनी कविता में यह खुबसूरत संदेश दिया कि जो भी जिंदगी आपको सामने प्रस्तुत करे उसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए।
कविता मुझे बेहद पसंद आई। कविता को लाईक किया और उसके साथ ही कमेंट बॉक्स में उस संयोग के बारे में भी लिखा कि इसी शीर्षक से मैंने भी एक कविता लिखी है। हां, साथ यह भी लिखा कि आपकी कविता मुझसे बेहतर है !
प्रत्युत्तर आया " ओह ! सचमुच, हां , पर शीर्षक ( Title) ही same है , content अलग है। "
साथ ही यह भी कि आपने भी अच्छा लिखा है। शब्द भी अच्छे हैं।
मैंने यह महसूस किया है कि कभी कभी किसी के द्वारा कहे गये सामान्य शब्द भी आपमें कुछ गुढ संदेश प्रवाहित कर देते हैं । अचानक मस्तिष्क में एक विचार कौंधा " यही तो उत्तर है इसका कि क्या है जिंदगी ?"
जैसे कविता का शीर्षक ( Title) तो एक है पर content अलग है वैसे ही जिंदगी की परिभाषा भी यही है कि " जिंदगी" शीर्षक तो सबका एक है पर content सबके भिन्न हैं । यह हम पर निर्भर करता है कि हम जिंदगी नामक इस कविता में क्या content रखना चाहेंगे ।
सोचिएगा अपकी जिंदगी नामक कविता में क्या content है !
जल्द ही फिर मिलेंगे तब तक अलविदा....
- ओम
०६.०७.२०२०
© aumsairam
कुछ ज्यादा ही वक्त गुजरने लगा है। वास्तव में पढ़ने का शौक पहले से ही रहा है। अच्छा साहित्य अभिभुत सा कर देता है।समय मानों पंख लगा कर उड़ जाता है। इसकी वजह है Writco के लेखक / लेखिका और उनकी रचनाएं। थोड़े ही दिनों में मैं उनका प्रशंसक बन गया हूं।
बस समय मिलते ही मैं उनकी रचनाओं में खो जाता हूं।
कल इसी तरह Writco पर खोया हुआ था कि अचानक एक कविता के शीर्षक पर नजर गई।
" आखिर क्या है जिंदगी ..."
अरे ! इसी विषय पर तो मैंने भी कविता लिखी थी ! हां, हां, बिल्कुल वही शीर्षक है ! पर यह कविता किसी और कवियत्री की थी।
कविता तत्क्षण पढ़ गया। कविता वास्तव में बहुत सुंदर थी। मैंने अपनी कविता में " आखिर क्या है जिंदगी" के जबाव में कुछ प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी जैसे एक मोड़ है, एक होड़ है , एक अरदास है, एक विश्वास है.. आखिर क्या है जिंदगी ?
पर उस कवियत्री ने अपनी कविता में यह खुबसूरत संदेश दिया कि जो भी जिंदगी आपको सामने प्रस्तुत करे उसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए।
कविता मुझे बेहद पसंद आई। कविता को लाईक किया और उसके साथ ही कमेंट बॉक्स में उस संयोग के बारे में भी लिखा कि इसी शीर्षक से मैंने भी एक कविता लिखी है। हां, साथ यह भी लिखा कि आपकी कविता मुझसे बेहतर है !
प्रत्युत्तर आया " ओह ! सचमुच, हां , पर शीर्षक ( Title) ही same है , content अलग है। "
साथ ही यह भी कि आपने भी अच्छा लिखा है। शब्द भी अच्छे हैं।
मैंने यह महसूस किया है कि कभी कभी किसी के द्वारा कहे गये सामान्य शब्द भी आपमें कुछ गुढ संदेश प्रवाहित कर देते हैं । अचानक मस्तिष्क में एक विचार कौंधा " यही तो उत्तर है इसका कि क्या है जिंदगी ?"
जैसे कविता का शीर्षक ( Title) तो एक है पर content अलग है वैसे ही जिंदगी की परिभाषा भी यही है कि " जिंदगी" शीर्षक तो सबका एक है पर content सबके भिन्न हैं । यह हम पर निर्भर करता है कि हम जिंदगी नामक इस कविता में क्या content रखना चाहेंगे ।
सोचिएगा अपकी जिंदगी नामक कविता में क्या content है !
जल्द ही फिर मिलेंगे तब तक अलविदा....
- ओम
०६.०७.२०२०
© aumsairam
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