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"वो पहला दिन"
विदा होते, रात के दो बज गए थे। सुबह नीर की आंख खुली तो देखा, अंजना पढ़ रही थी। दोनों की शादी के बाद वो पहला दिन था। नीर ने आश्चर्य से पूछा, क्या पढ़ रही हो? अंजना झिझकते हुए बोली, परसों सिविल सेवा की परीक्षा है मेरी। तुमने पहले क्यों नहीं बताया? मायके में भी किसी को नहीं पता। पिताजी की तबियत खराब रहती है, वो शादी कर, मुझे सुखी देखना चाहते थे। मैने चुपचाप फार्म भर दिया था। लेकिन अभी तो मेहमानों का आना लगा रहेगा। सब बहु देखने आयेंगे, परीक्षा वाले दिन तो मां ने कीर्तन रखा है। बड़बड़ाते हुए नीर, लंबी गहरी सांस भर बोला, अंजना कुछ मत बोलना, चुपचाप जी जान से तैयारी करो। नीर पिताजी के पास बैठा था। पिताजी वो तुषार है ना, मेरा मित्र, उसने तो गड़बड़ कर दी एक। क्या? पिता बोले। उसने आज रात, रामेश्वरम आने जाने की हवाई टिकट, विवाह उपहार में दी हैं। वाह, फिर क्या करना है, पिता ने पूछा? पिताजी मेरा तो जाने का मन है क्योंकि मेरा तो बजट नहीं बनेगा जल्दी से हवाई यात्रा का और अंजना भी खुश हो जाएगी। सब समझ पिताजी मुस्काते बोले, ठीक है बेटा चले जाओ। लेकिन मां.. और वो पाठ..हिचकते हुए नीर बोला। वो सब मैं समझा संभाल लूंगा। नीर,अंजना अब परीक्षा केंद्र के पास एक होटल में थे। अंजना ने परीक्षा दी, आज वह जिला मजिस्ट्रेट है।
© क्यों हो?pankaj!