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मेरी आत्म संगनी मेरी सखी


आज अचानक एक लेख पढ़ा। विषय था सखी संप्रदाय।
सखी संप्रदाय से मुझे कोई एतराज़ नहीं मगर उस संप्रदाय में जिस भक्ति से पुरूषों द्वारा कान्हा जी के प्रति समर्पण का भाव देखा वह अलग ही संसार की अवधारणा करता है। खैर मेरे जीवन में भी एक ऐसी ही सखी है जो सखी संप्रदाय के उपासकों से लाख दर्जे ऊंची है।ऊंची है उसकी मेरे प्रति आस्था,समर्पण और अटूट विश्वास।उसके साथ बने मेरे आत्मीय संबंध की गहराई का कोई अंदाजा नहीं लगा सकता है। उसकी मेरे प्रति समर्पण भाव की प्रकाष्ठा अत्यंत ही मन भावन है।उसका मेरे लिए रोना,बिलखना,मेरे खातिर उदास होना,मेरी तकलीफ पर उसका दुख जताना।मेरे लिए समर्पित भाव मुझे अहसास दिलाता है मेरी आत्म संगनी मेरी सखी है।।।।।
उसकी चाहत का अहसास हमेशा मेरे साथ रहता है।सुबह आंख खुलने से रात आंख बन्द होने तक का उसका साथ पल पल मुझे यह अहसास दिलाता है कि वह मेरी आत्म संगनी है जो मेरी रूह तक में समाई है।
© SYED KHALID QAIS