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श्रीकृष्ण द्वारा बलजोरी की संजीवनी परिछा के पड़ाव का वर्णन।।
लेखक -एक असंभव प्रेम गाथा अनन्त इसलिए कही गई है क्योंकि सत्य बहुत कटु है मगर बहुत बड़ा सतयवजन संकल्प है -"यह गाथा एक असंभव प्रेम गाथा अनन्त इसलिए है क्योंकि यह एक वसना ग्रन्थि पूर्ण है इसलिए क्योंकि "एक इस्त्री अपनी जिन्दगी चलाने के कुंजी एकत्र करना चहाती है और जो पढ़ी लिखी होती है वो और जो अनपढ़ हैं वो दोनो एक वैशया की रूप में देखी जा सकती है क्योंकि क्योंकि जो वैशया है वो तो वेश्यावृत्ति में दबी मगर जो आम है वो भी एक वैशया ही है क्योंकि "आदम" कोई भी हो " सब स्त्री का भोग ही लगाना चहाते है।।"
आज कल रूह नहीं बल्कि जिस्म को चूमने वाले ये दरिदे प्रेम गाथा पर सबसे बड़ा लांछन है।। मगर आश्चर्य की बात तो यह कही गई कि यह एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त है।। मगर यह सही है कि प्रेम का अपमान करने वाली यह कन्या कदा भी संजीवनी की भागीदार नहीं होती है।।
और अब वो जान चुकी है कि उससे पाप हुआ है।।
इसलिए अब वो श्रीकृष्ण से कहती हैं कि "है नारायण मैं नहीं नहीं जानती कि मैं सही हूं या गलत मगर कुछ सहयता करे और चरणों में गिर जाती हैं मगर फिर जो हुआ वो हुआ।।-प्रथम पड़ाव प्राशित की प्राथना की मांग कर रही थी।।
मगर क्या हुआ ऐसा कि एक प्राशित की भागिदार भी नहीं बन सकी।।
वो प्रेम गाथा में शामिल होकर भी यह नहीं जान सकी उसके साथ ऐसा क्या हुआ कि वो आज इस दशा में है।।
सवाल प्रस्तुति -वैशया का कोई चरित्र नहीं है ऐसा कहा जाता है और उन्हें निम्न कारार किया गया है।।
मगर क्या ऐसा सच्च में है क्योंकि अगर उनका अस्तित्व नहीं होता तो आज हर कोई उनके दर पर नहीं जाता।।
वैशया ने प्रेम किया और और नायक ने छल किया।।
मगर अगर अपराध हुआ है तो दोनो से हुआ इसलिए सजा के हकदार भी दोनो।।-राधाकृषण विचार परामर्श करते हैं।।
#सुनवाई