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बात कुछ उन दिनों की(ज़िन्दगी एक सवाल)
बात कुछ उन दिनों की है शायद वो कुछ लोग थे ,नहीं शायद वो एक ज़िन्दगी है कहते हुए पर्सू आगे बढ़ रहे थे, साथ वो अपनी परछाई से बातें किए जा रहे थे क्या यह सच है? के हर इंसान अपनी नासमझ सी उलझी हुई बातों में खुद को कमजोर और लाचार समझते है । की वो सिर्फ अपने हक की ज़िन्दगी जिए जा रहे जो होता है। वह हमारे परमेश्वर करते है क्या सच में इतनी नासमझ बुद्धि है उन इंसानों में जो इसका उलंघन करते है ये...