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सूरत पर सीरत भारी
ये कहानी दो जुड़वां बहनों की है
एक सांवली और दूसरी दूध सी गोरी।
जब पैदा हुई तो घर में मानों ख़ुशी की लहर दौड़ गई। मिठाईयां, बधाईयां और रिश्तेदारों का आना जाना घर पर। सब कुछ कितना अच्छा लग रहा था। पर जैसे जैसे दोनों बढ़ने लगी,तो मां के मन में एक चिंता घर कर गई कि बड़की तो रंग रूप में सांवली निकली,अब आगे जा कर कौन करेगा इससे शादी? वहीं छुटकी,नैन - नक्श में एकदम महारानी जैसी। जब कभी साथ में दोनों खेलती तो यूं लगता जैसे सूर्य और चंद्रमा की जोड़ी। देखने वालों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि दोनों जुड़वां हैं। बचपन से ही बड़की को लोग उसके रंग रूप के चलते ज़्यादा प्यार नहीं करते थे, बेचारी हमेशा उदास रहने लगी। मां से पूछने लगी कि मां, मुझे भगवान जी ने ऐसा क्यों बनाया? मां के पास कोई जवाब नहीं होता।
बस ऐसे ही दोनों साथ साथ बढ़ने लगी और कालेज तक का सफ़र तय किया। पर यहां भी बड़की हमेशा की तरह उलाहना का पात्र बनी। कोई भी उससे उसके सांवले रंग के चलते दोस्ती नहीं करता था और न ही बात। बेचारी हमेशा ख़ुद को किताबों में डुबोए रहती। पढ़ने में गुणी, बड़की के पास हर सवाल का जवाब होता था तो वहीं रूपवान छुटकी, पढ़ने लिखने में पीछे। आगे की पढ़ाई कर बड़की ने परिवार का नाम रौशन किया और आगे चलकर टीचर बनी,तो वहीं घरवालों की झिकझिक से परेशान छुटकी, पढ़ाई को लेकर बिल्कुल भी सजग नहीं,दिन भर ख़ुद को शीशे के सामने निहारना, अलंकार करना,बस इसी में दिन बिताने लगी और जब परिवार वालों द्वारा ये कहने पर कि भले ही बड़की सूरत से गुणवान नहीं,पर सीरत की बिल्कुल खरा सोना है, नाराज़ हो कर एक दिन घर छोड़ कर, किसी लड़के के साथ भाग गई। परिवार वालों पर मानों गाज गिर गई, किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं बचे। जैसे तैसे कुछ समय बीता और बड़की के लिए एक बहुत ही अच्छा रिश्ता आया तो बिना विलम्ब किए, परिवार जनों ने विवाह का आयोजन किया और सबके आशिर्वाद से विवाह संपन्न हुआ।
अब सीरत से गुणवान बड़की रानी बन अपने ससुराल में सब का स्नेह, सम्मान पा कर ख़ुशी ख़ुशी जीवन व्यतीत करने लगी तो वहीं दूसरी तरफ,छुटकी, सूरत से गुणवान,कायरों जैसे चेहरा छुपा कर, ज़माने से जीने लगी।
इससे हमें ये सीख मिलती है कि सूरत पर नहीं,सीरत पर गुमान करिए। सीरत ही हमारी असली धरोहर है,सूरत का क्या है,आज है,कल ढल जानी है।

© Aphrodite