...

3 views

Bachpan ke din
एक समय था बचपन का, जहाँ खुशियों का खजाना था।
चाहत चॉद को पाने की थी, पर दिल तितली का दिवाना था।
कोई सुबह की खबर नहीं थी, ना ही शाम का ठिकाना था। पर खेलने जाना था।
माँ की कहानी थी, स्कूल से थक कर आना, परीयों का फसाना था।
बारिश में कागज की नाव थी, हर मौसम सुहाना था।

रोने की वजह नहीं थी, ना ही
हँसने का बहाना था। क्यों हो गए हम इतने बड़े,
इससे अच्छा तो वह बचपन का समय था। वह बचपन का था समय था
तेरे गिरने में, तेरी हार नहीं।
तू आदमी है, अवतार नहीं ।।
गिर, उठ, चल, दौड, फिर भाग,
क्योंकि
जीत संक्षिप्त है इसका कोई सार नहीं।
वक्त तो रेत है।
फिसलता ही जायेगा
जीवन एक कारवां है
चलता चला जायेगा
मिलेंगे कुछ खास
इस रिश्ते के दरमियां
थाम लेना उन्हें वरना
कोई लौट के न आयेगा
© All Rights Reserved