...

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प्रेम अध्याय...
सुनो ...

तुम्हे याद है जब लोग प्रेम के प्रथम अध्याय में होते हुए भी प्रेम के अंतिम अध्याय की बात करते है की
मैंने तुम्हे बता दिया था कि क्या होगा,

अंत में एक दिन तुम चले जाओगे मुझे पीछे छोड़ कही ,( मिलने से पहले बिछने की चिंता)
दूर पलट कर भी नही देखोगे की जिसे आज
इतना प्रेम जताते हो
कल को तुम्हारे जाने के पश्चात कैसे रहेगें क्या बीतेगी जीवित रहेंगे या शांत,
निर्जीव,शून्य हो जाएंगे,
प्रेम का अंतिम अध्याय कैसे सह पाए कोई ?
बीच के भी कई अध्याय बताए जाते है
गीले शिकवे आपसी मतभेद
ये तो देखा न होगा तुमने लोगो मे,
प्रेम का अंतिम अध्याय का अंत उससे भी कही जायदा भयावाह होता है,
जिन बातों को कभी
हम सोच भी नही सकते प्रेम में लोग वही खिलाफ सब कर देते है
क्या खूब हमारे प्रेम को अंतिम अंजाम देते है और
अंतिम अध्याय को लोग जीवन का प्रथम अध्याय बनाकर छोड़ देते है,
लाकर वही ख़त्म कर देते हैं
जहा से शुरु हुआ था.!!