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दिल और दिमाग़ की कश्मकश..
सोचते रहते हैं हम अक्सर, दिमाग़ से और दिल
की चलने ही नहीं देते हैं, तभी शायद चाहते हुए भी, हम प्यार को मुकम्मल नहीं कर पाते हैं और ख़ुद से ही, जूझते रह जाते हैं, ज़िन्दगी की, उधेड़बुन में, अपनी ही चाहतों को दरकिनार करके।

क्या ऐसा आपके साथ भी होता है, या कभी हुआ है, ये दिमाग़ और दिल की कश्मकश में ना जाने इन्सान क्यों पिसता रहता है। दिमाग़ हमें सब समझाता है, क्या सही है क्या ग़लत, इसके बारे में सूचित करता है, और वहीं दिल सिर्फ़ भावना पर ही केंद्रित रहता है, कुल मिला कर देखें तो दिल सोचता कम और महसूस ज्यादा करता है।

असल ज़िन्दगी में हम कुछ महसूस करते हैं किसी के लिए, जैसे प्यार, इज़्ज़त, नफ़रत आदि, यह ज़रूरी भी है, सिर्फ़ Practical होने या फिर समाज की रूढ़िवादी विचारधारा के साथ ज़िन्दगी भर चलते रहना भी कहाँ की समझदारी है, समय के साथ चलना, मगर अपनी भावनाओं का ध्यान रखना भी बेहद ज़रूरी है।

कुछ कमी बेसी तो सभी में होती है, आख़िर इन्सान से ही गलती भी होती है, मगर फिर उसे सुधारना भी हमारा काम है, और ख़ुद को जो पसन्द है, उसे पाना भी ज़रूरी है।

आइए अब हम दोनों ही, दिल और दिमाग़ में आपसी प्रेम बढ़ायें, और समझ बूझ कर अपनी भावनाओं को भी प्राथमिकता दें, अपनी अन्दरूनी ख़ुशी और सन्तुष्टि केआर लिए..

© सुneel