जलेबी जोधपुर की…
Jalebi
सम्भवतया जलेबी ही अकेली मिठाई होगी जो की दुनिया की हर ज़ुबान/ भाषा में लगभग एक ही नाम से जानी जाती है ।
चाहे वो हिंदी,मराठी, असमी, तमिल, तेलगू ,मलयालम, कन्नड़, गुजराती, बंगाली, उड़िया, उर्दू,सिंधी, सिंहली, पश्तो, पर्शियन, कुर्दीश, ल्युरिश, अज़रबैजानी,अरबी, तुर्की,ट्युनिशियन हो या और कोई एशियाई भाषा जलेबी ने अपने परम्परागत स्वाद और नाम के साथ कभी समझौता नहीं किया।
कहते हैं की दसवीं शताब्दी से पहले पश्चिमी एशिया में कहीं रमज़ान की मिठाई के रूप में इसका चलन शुरू हुआ था, भारत में प्रचलित शब्द जलेबी इसके मुख्य नाम जोलबिया से समानांतर ही है जो कि उर्दू और पारसी शब्द जुलबिया का अपभ्रंश है।
15वीं व 16वीं शताब्दी के कुछ स्थानीय ग्रंथों में इसे कुण्डलिका व जलवल्लिका के नाम से भी उल्लेखित किया गया है तो वहीं कुछ संस्कृत ग्रंथों में इसके स्वाद व गुणों के आधार पर ज्ञानगुणबोधिनी कह भी संबोधित किया गया है।
अपने जन्म के हज़ारों साल बाद भी जलेबी दुनिया के दिलों पर राज करने में कामयाब रही है, आज हिन्दुस्तान के हर कोने में सुबह की शुरुआत सुर्योदय के साथ हो ना हो पर जलेबी और समोसे के साथ ज़रूर होती है।
तस्वीर में दिख रहा शख़्स जोधपुर शहर का मोटू जलेबी वाला है जो की अपनी मोटी भारी भरकम काया की तरह ही मोटी और भारी भरकम जलेबी बनाने के लिये पहचाना जाता है । इन महोदय की बनाई एक एक जलेबी का वजन आधा किलो से एक किलो तक होता है।
बीते वर्ष कोविड में मोटू हलवाई इहलोक त्याग गये अब इनके बेटे अपने पुश्तैनी ज़ायक़े को सहेज रहे हैं।
कभी जोधपुर जाना हो तो त्रिपोलिया स्थित मोटू जलेबी वाले के यहाँ जलेबी खाना ना भूलें और हाँ ध्यान रहे इनके यहाँ जलेबी सिर्फ़ सुबह सुबह ही मिलती है ।
पोस्ट व तस्वीर-विक्की सिंह
© theglassmates_quote
सम्भवतया जलेबी ही अकेली मिठाई होगी जो की दुनिया की हर ज़ुबान/ भाषा में लगभग एक ही नाम से जानी जाती है ।
चाहे वो हिंदी,मराठी, असमी, तमिल, तेलगू ,मलयालम, कन्नड़, गुजराती, बंगाली, उड़िया, उर्दू,सिंधी, सिंहली, पश्तो, पर्शियन, कुर्दीश, ल्युरिश, अज़रबैजानी,अरबी, तुर्की,ट्युनिशियन हो या और कोई एशियाई भाषा जलेबी ने अपने परम्परागत स्वाद और नाम के साथ कभी समझौता नहीं किया।
कहते हैं की दसवीं शताब्दी से पहले पश्चिमी एशिया में कहीं रमज़ान की मिठाई के रूप में इसका चलन शुरू हुआ था, भारत में प्रचलित शब्द जलेबी इसके मुख्य नाम जोलबिया से समानांतर ही है जो कि उर्दू और पारसी शब्द जुलबिया का अपभ्रंश है।
15वीं व 16वीं शताब्दी के कुछ स्थानीय ग्रंथों में इसे कुण्डलिका व जलवल्लिका के नाम से भी उल्लेखित किया गया है तो वहीं कुछ संस्कृत ग्रंथों में इसके स्वाद व गुणों के आधार पर ज्ञानगुणबोधिनी कह भी संबोधित किया गया है।
अपने जन्म के हज़ारों साल बाद भी जलेबी दुनिया के दिलों पर राज करने में कामयाब रही है, आज हिन्दुस्तान के हर कोने में सुबह की शुरुआत सुर्योदय के साथ हो ना हो पर जलेबी और समोसे के साथ ज़रूर होती है।
तस्वीर में दिख रहा शख़्स जोधपुर शहर का मोटू जलेबी वाला है जो की अपनी मोटी भारी भरकम काया की तरह ही मोटी और भारी भरकम जलेबी बनाने के लिये पहचाना जाता है । इन महोदय की बनाई एक एक जलेबी का वजन आधा किलो से एक किलो तक होता है।
बीते वर्ष कोविड में मोटू हलवाई इहलोक त्याग गये अब इनके बेटे अपने पुश्तैनी ज़ायक़े को सहेज रहे हैं।
कभी जोधपुर जाना हो तो त्रिपोलिया स्थित मोटू जलेबी वाले के यहाँ जलेबी खाना ना भूलें और हाँ ध्यान रहे इनके यहाँ जलेबी सिर्फ़ सुबह सुबह ही मिलती है ।
पोस्ट व तस्वीर-विक्की सिंह
© theglassmates_quote
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