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समाज:- सभ्य या असभ्य
किसी भी जीव पे कुछ अंकुश होना बहुत आवश्यक है।
औरत और आदमी इस दुनिया की वो कृति हैं जिन पर ये बात पूरी तरह से लागू होती है।आदमियों को सदियों से हर काम की स्वतन्त्रता दी गई। नतीजा ,औरत को रूह ही समझना छोड़ दिया गया,केवल जिस्म समझा गया,मेरी ही सत्ता है आदमियों ने यही माना। यही स्वतन्त्रता जब औरतों को दी गई तो उनमें कुछ के गलत फैसले उन्हीं के लिए घातक सिद्ध हुए....नतीजा समाज में हर औरत दोषी क़रार दी गई, बेअकल, बुद्धिहीन। आदमियों ने ये मान लिया कि ये गुलाम ही रहें तो अच्छा है,समाज ने भी साथ भरपूर दिया।

उदाहरण लेे लीजिए... विधुर किसी भी शुभ काम में शामिल हो सकता, लेकिन विधवा शुभ,शफा,मनहूस के फेर में हमेशा डाली गई हमेशा।
बात अायी सम्मान की।

तो

बलात्कार करने वाला जीवन अच्छे से जी सकता ,सिर उठा के,शादी कर लेगा परिवार बना लेगा।

लेकिन पीड़िता को जो उपेक्षा झेलनी वो तो एक तरफ,उसके परिवार के बच्चे ,बहनों भाइयों तक से लोग मुंह मोड़ते है।

वो दोबारा अपना जीवन सही से जी भी नहीं सकती।

और ये हमारा सभ्य समाज है।

जिसकी सोच बिल्कुल असभ्य है।।



समीक्षा द्विवेदी


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