...

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आज यही सही है
आज तन्हा हूँ
फिर भी महफिलें हैं
कल की सी बात थी
वो तन्हाइयां महफ़िल से कम नहीं थी,जिनमें हम तुम मिलते थे, न कोई शिकवा न शिकायत थी,आज दूर हैं, मिलने की कोई सूरत नहीं दिखती ,शिकायत औऱ शिकवे तो बहुत हैं गिनती नहीं है किस किस बात का शिकवा करेंगे, जब आओगे सामने या सिर्फ...