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The chariot of time
#LastTrain

रात का सन्नाटा छाया था जब मैं ट्रेन के डिब्बे में चढ़ी। मेरी आँखों के सामने जैसे इतिहास के पन्ने खुलने लगे। डिब्बे में बैठे सभी यात्री अलग-अलग ऐतिहासिक युगों की महिलाएँ थीं। एक क्षण के लिए मुझे लगा, मानो मैं किसी अदृश्य दरवाजे से निकल कर समय के भिन्न-भिन्न पड़ावों में पहुँच गई हूँ। यह ट्रेन कहाँ जा रही थी, और मैं यहाँ क्यों थी, ये प्रश्न मन में उठने लगे।

ट्रेन की पहली सीट पर एक महिला बैठी थी, गुफाओं के काल की। उसकी आँखों में आदिम जीवन की कड़ी मेहनत और संघर्ष की कहानी बसी थी। वह पत्थरों से बने औजार पकड़े हुई थी, जो अपने जीवन यापन के लिए उसका सबसे बड़ा सहारा था। उसके बच्चे उसकी गोद में थे, और उनके चेहरे पर असुरक्षा की एक अनकही कहानी लिखी हुई थी। मानो आंखो में एक अहसास लिए वो दिन से रात और रात से दिन होने का इंजतार करते थे।

आगे बढ़ते हुए, मैंने देखा कि एक महिला हड़प्पा सभ्यता से थी। उसकी साड़ी कुछ अलग तरह से बंधी थी, और उसकी आँखों में ज्ञान और समाज का अनुभव था। उसने अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अपने समाज में अपनी भूमिका को बखूबी निभाया था। लेकिन फिर भी, उसकी आँखों में एक अनकहा डर झलकता था, जिससे वह अपने बच्चों को समाज के दुष्ट तत्वों से बचाने के लिए चिंतित थी।

इसके बाद एक और महिला दिखाई दी, मौर्य काल की। वह राज्य के प्रशासन में हिस्सेदारी रखती थी, परंतु उसके ऊपर भी पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ था। उसका चेहरा आत्मविश्वास और शक्ति का प्रतीक था, पर उसके दिल में अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंता भी बसी थी।

फिर, गुप्त काल की महिला सामने आई, जो कला और साहित्य की संरक्षक थी। उसकी आँखों में सृजनात्मकता की चमक थी, परन्तु उसके समय में भी समाज ने उसे उसकी इच्छाओं और सपनों की परिधि में सीमित रखा था। उसके बच्चों के प्रति उसका प्रेम और उन्हें सुरक्षित रखने की इच्छा उसकी आँखों में साफ़ दिखाई देती थी।

मध्यकाल की महिला की ओर बढ़ते हुए, मैंने देखा कि उसकी स्थिति कितनी मुश्किल हो गई थी। वह समाज की पाबंदियों से घिरी हुई थी और अपने बच्चों को इन पाबंदियों के बीच सुरक्षित रखने की चुनौती से जूझ रही थी। उसकी आँखों में असुरक्षा और भय की लकीरें उभर आईं थीं।

इसके बाद आई आधुनिक युग की महिला। वह शहरी जीवन में जी रही थी, हाथ में लैपटॉप और कंधे पर बच्चों की जिम्मेदारियाँ थीं। उसकी आँखों में संघर्ष और संघर्ष के बीच सफलता पाने की लालसा साफ दिख रही थी। वह अपने बच्चों के लिए एक सुरक्षित और समानता से भरा हुआ भविष्य चाहती थी, लेकिन फिर भी समाज में हो रहे अत्याचार और अन्याय उसे चिंतित कर रहे थे।

ट्रेन के डिब्बे में बैठी इन सभी महिलाओं में एक बात समान थी—उनकी संतान के प्रति उनका प्रेम और उनकी सुरक्षा के लिए चिंता। इन महिलाओं ने अपने-अपने युग में विभिन्न चुनौतियों का सामना किया था, लेकिन बच्चों की सुरक्षा और उनके भविष्य को सुरक्षित करने की चाह उनके दिल में सदैव रही।

जब ट्रेन रुकी, तो एक आवाज़ गूँजी, "यह समय का स्टेशन है। आप सभी ने अपनी-अपनी यात्रा पूरी कर ली है।"

मैं समझ गई कि यह ट्रेन समय के विभिन्न कालों की गवाहियों को साथ लेकर चल रही थी, और मैं वहाँ इसलिए थी क्योंकि कल को शायद मैं भी एक महिला होंगी।
ये कड़वा हकीकत था, पर था तो हकीकत जो मुझे बहुत परेशान कर रहा था।

पर मैं वहाँ इसलिए भी थी ताकि मैं समझ सकूँ कि कैसे इन महिलाओं ने अपने युग में चुनौतियों का सामना किया और अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए संघर्ष किया।

इस ट्रेन ने मुझे यह सिखाया कि समय चाहे कितना भी बदल जाए, मातृत्व की भावना और बच्चों की सुरक्षा की चिंता एक निरंतर चलती हुई यात्रा है, जो कभी समाप्त नहीं होगी।

हर लड़की को इस ट्रेन का सफर तय करना होगा , तब तक जब तक कायनात है या जब तक कायनात के नियम नहीं बदल जातें...

© --Amrita
#writostory
#Truth that cannot be denied
#RESPECTWOMEN