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यात्रा वृतांत----)" मेरी पहली लेंस डाउन की यात्रा 24/९/१४"
हम सभी को किताबें पढ़ने से ज्यादा घूमने फिरने का शौक ज्यादा होता है यह मेरा पहला यात्रा वृतांत है लैंसडाउन की यात्रा जो की उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में पडता है तो चलिए मे आपको ले चलती हूं सुन्दर सफर में------)
आज मैं सुबह जल्दी तो नहीं उठ पाई लेकिन अचानक से पापा ने लैंसडाउन जाने का प्लान बना लिया,हां पिछली रात इस विषय पर बात तो चल रही थी लेकिन वह कहते हैं ना जो जो होना
होता है सो सो तब तक होता है अर्थात ईश्वर पहले से ही निश्चित कर लेता है कि उसका बनाया हुआ परिंदा अब कहां उड़ान भरेगा ।
पापा और मैं उठकर फ्रेश हो गए और जाने की तैयारी भी करने लगे सभा के 8 बज चुके थेहम घर से रवाना हो रहे थे मम्मी ने यात्रा मंगलमय की शुभकामनाएं दी और हम चल पड़े।
पहले मोटा डाक से कोटद्वार ऑटो में बैठे हैं फिर बस स्टॉप में गए सामने एक मैक्सो गाड़ी भी थी जो लेंस डाउन जा रही थी पापा बस से जाने के लिए आगे बढ़े लेकिन वहां पर पूछने पर पता चला कि वह गाड़ी तो सुबह 8:00 बजे ही चली गई फिर हमने मैक्सन छोटी जीप गाड़ी पर बैठ गए पहले पापा खिड़की की तरफ बैठे फिर मुझे मौका मिला खिड़की की तरफ ----मुझे बैठा दिया मैं बहुत खुश होने लगी जैसे ही यात्रा शुरू हुई हमने जैसे सिधबलीबाबा कहकर शुभारंभ किया पहले हमने सिद्धबली के रास्ते को पार किया फिर दुगद्डा मैं खिड़की से प्रकृति के नजरों को देख रही थी।
और मन सोच रही थी वाह जन्नत है यह उत्तराखंड और इसके पर्यटक स्थल चारों तरफ पहाड़ और हरियालीनीचे नदी बह रही थी बीच-बीच में नदी के झरने अपनी और आकर्षित कर रहे थे वहां के पहाड़ किसी ऊंची मीनार से कम नहीं लग रहे थे
बड़े-बड़े पत्थर व पीले रंग के फूलों की खेती यह नजारा मैंने कभी सहरों में नहीं देखा था मैं घड़ी को देखकर समय की तरफ मुड़ी अब वहां से लगभग 16 किलोमीटर दूर ही रह गया था।
मन तो वही बसने का कर रहा था आखिर यह जगह लग ही इतनी प्यारी रही थी पापा ने मुझे चीड़ के वृक्ष दिखाएं जिससे लिसा अर्थात एक गोंद जैसा पदार्थ निकलता है मैंने सीढीनुमा या फिर यूं कहें कि सीढ़ीदार खेती भी पहले बार देखी जो की मैं बचपन से किताबो मे देखे थे
वह उनके विषय में सोचती थी कि कैसे वहां के लोग खेती करते होंगे कैसे होती होगी वहां खेती जाते समय लांस डाउन की राह पर मैंने कुछ छोटे तथा कुछ बड़े आकार के बने घर देखें,
रास्ते में टी स्टॉल भी था ,वहां के लोगों को छोटे पतले रास्तों पर चलते देखा कुछ बच्चों को स्कूल आते जाते भी देखा मैं मन मे खुशी का अनुभव कर रही थी अब आगे क्या नया देखने को मिलेगा मन मे उत्साह रोमांच दोनों ही भरा था अब मैं वहां ----लैंसडाउन छावनी देखने लगी ,जहां पर आर्मी ऑफिसरवह वह कैडेट्स द्वारा परेड दिखाई पड़ रही थी तथा बोर्ड पर बटालियन सेवा के ऑफिसर भी लिखा हुआ था पापा कुछ लोगों से अपॉइंटमेंट ऑफिस के बारे में पूछ रहे थे उन्होंने कहा बस दो कदम की दूरी पर अब हम वहां पहुंच गए , वहां ड्राइवर का नंबर भी नोट किया और किराया भी उसको दिया अपलेमेंट ऑफिस पहुंचकर वहां से फॉर्म लिया उसे भरकर जमा कर दिया फिर थोड़ी देर बाद फोटो खींचकर वहां काम हो गया और मैं अपने भाई का फॉर्म भी भारतेकिन उसके वहां नाहोने पर उसका काम नहीं हो पाया क्योंकि हस्ताक्षर की जरूरत पड़ती है ना, फिर मांमें सोचा चलो कोई नहीं जब वह आएगा तो उसका काम खुद हो जाएगा हम अब एक मिश्रा होटल में गए वहां बैठकर चाय समोसा दो रसगुल्ला ब्लैक और व्हाइट बड़े चाव से खाएं होटल का पेमेंट देखकर हम वहां से निकल पड़े तथा बुक शॉप से दो पसंदीदा किताबें खरीदी फिर वहां से भी आगे चल पड़े वहां एक मंदिर महाकालेश्वर के दर्शन तो नहीं कर पाए बस हाथ जोड़कर आ ग्गये रास्ता पहाड़ी अर्थात ऊपर से नीचे की तरफ चढ़ाई का था मैं तो थक ही गई थी,
फिर वहां से वापस लौटते समय एक पत्थर पर बैठ गई तथा फिर हिम्मत जताकर आगे बढ़ी अब हम लैंसडाउन से वापस हो रहे थे रास्ते की दुकान से मैंने एक आकर्षक पेन की रिंग जो की मोती वह कांच वह शीशे से जुड़ा हुआ था ₹35 का लिया वहां चश्मा वह कपड़े के दामतो दिल्ली वह कोटद्वार से भी बहुत ज्यादा थे अर्थात् उनको भी पछाड़ रहे थेमैंने वहां से हैंड मिरर भी खरीदा,
अब उसके तुरंत बाद हमें बस मिल गई और वह थोड़ी देर बाद चलने वाली थी इसलिए पापा बस से उतरे और थोड़ी देर में ही वापस आए और एक बड़े साइज का पहाड़ी कद्दू लेकर आए अब बस चलने लगी क्योंकि पहाड़ी इलाका है तो पहाड़ी कद्दू ही मिलेगा फिर वह प्रकृति के नजारे में बस से खिड़की से देख रही थी मुझे तो नींद भी आ रही थी और थोड़ी जबकि भी ले ली मैंने और पापा तो बस पूछो मत फुल डिस्क्रिप्शन दे रहे थे वहां के पेड़ों व खेती का देखो देखो बेटा यहां पर ऐसे पेड़ है यहां ऐसी नदियां बहती है यहां के जिलों का ऐसा नाम है मैं नजरों को देखकर सोने लगी अब हम दुगद्दा पार कर चुके थे कुछ ही दूरी पर कोटद्वार था वहां से उतरकर फ्रूटी भी हमने पीली क्योंकि कोटद्वार भी में मार्केट में आता है वहां से सैंडल ,चप्पल तथा कुछ फूड का मटेरियल भी खरीदा और रोड क्रॉस करके हम वहां से फ्लावर नर्सरी के पास आ गए कुछ दूरी और चलकर ऑटो पर बैठ गए और घर आ गए ।
मैं और पापा मम्मी को वहां की नजारो के बारे में को बताने लगेकी मम्मी लैंसडाउन जन्नत है जन्नत और यह मेरापहले सफर था पहाड़ी इलाके की तरफ फिर मैंने खाना खाया और मैं सो गई धन्यवाद।
good night because I am writing it dark night sweet dream
date :-24/9/14
ye uss date ki baat h tb smart mobile nhi tha to pic kese lete wha k bss dairy me likh diya tha jo ki aaj ,10/may/2024 ko iss writco app me likh rhi hu pdh k btana kesa lga

© 💟🐚Ganga Rajput🐚💟