सन्डे के ट्रैफिक का मज़ा..!
संडे के ट्राफिक का मजा....एक लाईव रिपोर्ट
मैं जब गांव में था तो मेरा मन भी शहर की ओर को भागता था, मैं बचपन से शहर में बसने का सपना लिए जैसे तैसे सरकारी शिक्षा को गृहण करता रहा और कूंद फांद कर ग्रेजुएशन करने की खातिर आखिर सजोए हुए सपने के इस शहर में आकर बस ही गया. इस बात को लगभग पंद्रह साल होने को आ गए लेकिन टिकने का ठीकाना अब तक इस्थाई नहीं कर पाया..., या यूं समझले पिछले चौदह सालों से मैं शहर की तमाम कालोनियों में हर मोहल्ले में घाट-घाट का पानी पी कर आया हूं...काश सरकार भी ऐसे अनुभवी किरायेदरों के लिए कोई आवार्ड घोषित करती तों हमें उस एवार्ड के पुरुष्कार में अब तक घरोंदा मिल ही गया होता, यहां पर ना तों कोई माकन मालिक इतना मेहरवान होता है कि 11 महीने से ज्यादा टिकने दे और नाहीं सरकार की इतनी हिम्मत होती है कि चलों इन किराएदारों के हित में कुछ कर दें आखिर हमारी बिरादरी भी तों सरकार की बोट बैंक हैं. खैर छोडो मैं भी कहां सपनों के आशियाने के जख्मो कों कुरेदने में लग गया.
तो जनाब ये कॉलोनी इस शहर की व्यस्ततम कालोनियो में से अतिव्यस्ततम कालोनी है ,जहाँ मैं किराये के मकान में रहता रह रहा हूं पॉश क़लोनी के नाम पर यहां अब कुछ भी पॉश नही है भले यहां चौबास घंटे बिजलीपानी ना हो पर चौबीसों घंटे चलने वाली ये सड़क हमारे अपार्टमेंट के सामने से ही गुजरती है. इसकी व्यस्तता का मुख्य कारण ये भी है कि मोहल्ले के पीछे की मेंन सड़क जो रेल्वे स्टेशन की तरफ जाती है उस पर हमेसा ही जाम लगा रहता हैं उसे यहां के समझदार वाशिंदे कैश मेन रोड़ के नाम से बुलाते हैं. कारण उस पर ट्राफिक पुलिश की चेकिंग का कटोरा नुमा नाका मेहरवान पुलिस के द्वारा लगा दिया जाता है..जिसके कारण अधिकतर छोटे बडे दो पहिया चार पहिया बाहन का रूख इसी सड़क से गुजरने लगता है क्योकि ये सड़क भी रेल्वे स्टेसन को ओर जाती है इस सड़क पर कभी कोई चेकिंग नहीं होती जिसके कारण वगैर हेलमेट घारी, दो पहियों पर चार-चार सबारी आदि-आदि चालक इसी सड़क पर हाबी हो जानें से इस सड़क पर ट्राफिक का दवाव बना ही रहता हैं स्टेशन यहां से करीब होने के कारण यहां हर घर में दुकानें भी है यानि इस सड़क पर काफी अच्छा मार्केट है हालांकि कॉलोनी पूर्णत रूप से वैध होते हुए भी अवैध है.
भारतीय परंपरा के अनुसार सरकारी नियमों को तोड़ने का पालन हर प्रकार से यहां किया गया है. रहवासी क़लोनी को बिना अनुमति के कामर्शियल में तबदील करने की प्रथा का पालन कर अवैध निर्माण, पानी की चोरी, बिजली की चोरी और दुकानों के निर्माण से भरपूर अतिक्रमण की जीती जागती तस्वीर को एक सच्चे भारतीय नागरिक की तरह पेश किया है. जो हमारे देश के ऐसे तमाम शहरों में होना आम बात है.आज मैं बालकनी में बैठा अखबार पढ़ रहा था. क्योकि आज सन्डे जो था. मतलब पूरी आज़ादी लेकिन आप मेरी इस बात का कतई इस अर्थ में ना लें कि मेरी धरम पत्नी मायके गई हुई है जो हमें आज के दिन की आज़ादी है. जनाब ऐसा कुछ नही है हम तो शादी शुदा वेचुलर प्राणी है....! नहीं समझे ? अरे भाई , दरअसल हम सरकारी दामाद तों हैं नहीं बस जीवन यापन के लिए पत्रकारिता करते हैं जनाब वो भी ईमानदारी की जब हमारा विवाह हुआ था तब हमारी ससुराल बाले बहुत खुश थे की दामाद जी शहर में होनहार पत्रकार है. आज नहीं तों कल अपना घर तों वो बनावा ही लेंगे और आठ दस सालों में तो कोई ना कोई कारोबार भी जमा ही लेंगे इसी हौंसलें के चलते हमारी अग्नीसाक्षी पत्नी ने भी हमारा चार पांच साल तों खूब साथ दिया दौड़-दौड़ कर उसने खूब मकान शिफ्ट करवाये लेकिन हर ग्यारह माह में घर बदलने के फैर में उसका पिछले दो साल से हौसला हवा हो गया, वो जान गई थी के ऐसी पत्रकारिता के चलते तों इस जनम में घर बन गया.. और हम से ये कहके मायके में जा बैठी के अगर एक साल में घर नहीं बनवाया तों मैं उसे हमेशा हमेशा के लिए भूल जाऊ.. तों जनाब आप समझ ही गए होगे इस आने वाले एक साल में हम अपना घर कहां से बना पायेंगे इस शहर में कम से कम किराये से रह कर हम अपने बचपन के सपने को तों पूरा कर ही रहे हैं.. ऐसा नही है कि हमने मकान के लोन के लिए अपनी चप्पलें नहीं घिसी कमबख्त ऐसा कोई बैंक इस शहर का नहीं बचा जिसमें घर बनवाने की आर्जी ना दी हो बस बात पत्रकारिता के पेशे की सुन कर बैंक बालें ऐसे हो जाते हैं जैसे उन्हे कोई सांप सूंघ गया हो.. अब आप ही बताओ क्या पत्रकार होना गुनाह हैं...? इसी बात के चलते वो भी मुंह फुला के मायके में बैंठ कर हमें कोस रही हैं और इसीलिए आज का दिन हमारी आजादी का दिन है सोचा था नाश्ता–पानी करके टी.वी. देखूंगा लकिन आज ना जानें बिजली वालों को हमारे मुहल्ले वासियों से कौन सी दुश्मनी हो गयी जो आज सुबह से ही लाइट गुल करके बैठ गए. उस पर से ये जान लेवा गर्मी अब आप ही सोचे हम मासूम मुहल्ले वालों पर क्या गुजर रही होगी ये दर्द आप बिजली की कृपापात्र वाले लोग क्या जानों ऊपर से ये पवन देव भी यहां से रुष्ट होकर ना जानें कहां की हुस्नों की जुल्फें उड़ा रहे है. और यहां लू के थपेडों से लोंगो के प्राण सुखा रहे हे. वैसे तों अभी ये उमस भरी गर्मी मेरे प्राण लेने पर तुली है, अक्सर ऐसा ही होता है जब भी लाइट गुल तों हवा भी गुल, ऐसा प्रतीत होता है के बिजली विभाग और पवन देव में कोई आपसी साठगांठ हो गई है लेकिन ये वो नही जानते के ऐसे समझोते लम्बे समय तक टिक नहीं पाते है..
तभी मेरे कानो मे जोर-जोर से गाड़ियों के होर्न की आवाजे गूंजने लगी थी . मैने बालकनी से झांककर देखा तों नीचे रोड़ पर भारी जाम लग था मैने ट्राफिक के जाम होने...
मैं जब गांव में था तो मेरा मन भी शहर की ओर को भागता था, मैं बचपन से शहर में बसने का सपना लिए जैसे तैसे सरकारी शिक्षा को गृहण करता रहा और कूंद फांद कर ग्रेजुएशन करने की खातिर आखिर सजोए हुए सपने के इस शहर में आकर बस ही गया. इस बात को लगभग पंद्रह साल होने को आ गए लेकिन टिकने का ठीकाना अब तक इस्थाई नहीं कर पाया..., या यूं समझले पिछले चौदह सालों से मैं शहर की तमाम कालोनियों में हर मोहल्ले में घाट-घाट का पानी पी कर आया हूं...काश सरकार भी ऐसे अनुभवी किरायेदरों के लिए कोई आवार्ड घोषित करती तों हमें उस एवार्ड के पुरुष्कार में अब तक घरोंदा मिल ही गया होता, यहां पर ना तों कोई माकन मालिक इतना मेहरवान होता है कि 11 महीने से ज्यादा टिकने दे और नाहीं सरकार की इतनी हिम्मत होती है कि चलों इन किराएदारों के हित में कुछ कर दें आखिर हमारी बिरादरी भी तों सरकार की बोट बैंक हैं. खैर छोडो मैं भी कहां सपनों के आशियाने के जख्मो कों कुरेदने में लग गया.
तो जनाब ये कॉलोनी इस शहर की व्यस्ततम कालोनियो में से अतिव्यस्ततम कालोनी है ,जहाँ मैं किराये के मकान में रहता रह रहा हूं पॉश क़लोनी के नाम पर यहां अब कुछ भी पॉश नही है भले यहां चौबास घंटे बिजलीपानी ना हो पर चौबीसों घंटे चलने वाली ये सड़क हमारे अपार्टमेंट के सामने से ही गुजरती है. इसकी व्यस्तता का मुख्य कारण ये भी है कि मोहल्ले के पीछे की मेंन सड़क जो रेल्वे स्टेशन की तरफ जाती है उस पर हमेसा ही जाम लगा रहता हैं उसे यहां के समझदार वाशिंदे कैश मेन रोड़ के नाम से बुलाते हैं. कारण उस पर ट्राफिक पुलिश की चेकिंग का कटोरा नुमा नाका मेहरवान पुलिस के द्वारा लगा दिया जाता है..जिसके कारण अधिकतर छोटे बडे दो पहिया चार पहिया बाहन का रूख इसी सड़क से गुजरने लगता है क्योकि ये सड़क भी रेल्वे स्टेसन को ओर जाती है इस सड़क पर कभी कोई चेकिंग नहीं होती जिसके कारण वगैर हेलमेट घारी, दो पहियों पर चार-चार सबारी आदि-आदि चालक इसी सड़क पर हाबी हो जानें से इस सड़क पर ट्राफिक का दवाव बना ही रहता हैं स्टेशन यहां से करीब होने के कारण यहां हर घर में दुकानें भी है यानि इस सड़क पर काफी अच्छा मार्केट है हालांकि कॉलोनी पूर्णत रूप से वैध होते हुए भी अवैध है.
भारतीय परंपरा के अनुसार सरकारी नियमों को तोड़ने का पालन हर प्रकार से यहां किया गया है. रहवासी क़लोनी को बिना अनुमति के कामर्शियल में तबदील करने की प्रथा का पालन कर अवैध निर्माण, पानी की चोरी, बिजली की चोरी और दुकानों के निर्माण से भरपूर अतिक्रमण की जीती जागती तस्वीर को एक सच्चे भारतीय नागरिक की तरह पेश किया है. जो हमारे देश के ऐसे तमाम शहरों में होना आम बात है.आज मैं बालकनी में बैठा अखबार पढ़ रहा था. क्योकि आज सन्डे जो था. मतलब पूरी आज़ादी लेकिन आप मेरी इस बात का कतई इस अर्थ में ना लें कि मेरी धरम पत्नी मायके गई हुई है जो हमें आज के दिन की आज़ादी है. जनाब ऐसा कुछ नही है हम तो शादी शुदा वेचुलर प्राणी है....! नहीं समझे ? अरे भाई , दरअसल हम सरकारी दामाद तों हैं नहीं बस जीवन यापन के लिए पत्रकारिता करते हैं जनाब वो भी ईमानदारी की जब हमारा विवाह हुआ था तब हमारी ससुराल बाले बहुत खुश थे की दामाद जी शहर में होनहार पत्रकार है. आज नहीं तों कल अपना घर तों वो बनावा ही लेंगे और आठ दस सालों में तो कोई ना कोई कारोबार भी जमा ही लेंगे इसी हौंसलें के चलते हमारी अग्नीसाक्षी पत्नी ने भी हमारा चार पांच साल तों खूब साथ दिया दौड़-दौड़ कर उसने खूब मकान शिफ्ट करवाये लेकिन हर ग्यारह माह में घर बदलने के फैर में उसका पिछले दो साल से हौसला हवा हो गया, वो जान गई थी के ऐसी पत्रकारिता के चलते तों इस जनम में घर बन गया.. और हम से ये कहके मायके में जा बैठी के अगर एक साल में घर नहीं बनवाया तों मैं उसे हमेशा हमेशा के लिए भूल जाऊ.. तों जनाब आप समझ ही गए होगे इस आने वाले एक साल में हम अपना घर कहां से बना पायेंगे इस शहर में कम से कम किराये से रह कर हम अपने बचपन के सपने को तों पूरा कर ही रहे हैं.. ऐसा नही है कि हमने मकान के लोन के लिए अपनी चप्पलें नहीं घिसी कमबख्त ऐसा कोई बैंक इस शहर का नहीं बचा जिसमें घर बनवाने की आर्जी ना दी हो बस बात पत्रकारिता के पेशे की सुन कर बैंक बालें ऐसे हो जाते हैं जैसे उन्हे कोई सांप सूंघ गया हो.. अब आप ही बताओ क्या पत्रकार होना गुनाह हैं...? इसी बात के चलते वो भी मुंह फुला के मायके में बैंठ कर हमें कोस रही हैं और इसीलिए आज का दिन हमारी आजादी का दिन है सोचा था नाश्ता–पानी करके टी.वी. देखूंगा लकिन आज ना जानें बिजली वालों को हमारे मुहल्ले वासियों से कौन सी दुश्मनी हो गयी जो आज सुबह से ही लाइट गुल करके बैठ गए. उस पर से ये जान लेवा गर्मी अब आप ही सोचे हम मासूम मुहल्ले वालों पर क्या गुजर रही होगी ये दर्द आप बिजली की कृपापात्र वाले लोग क्या जानों ऊपर से ये पवन देव भी यहां से रुष्ट होकर ना जानें कहां की हुस्नों की जुल्फें उड़ा रहे है. और यहां लू के थपेडों से लोंगो के प्राण सुखा रहे हे. वैसे तों अभी ये उमस भरी गर्मी मेरे प्राण लेने पर तुली है, अक्सर ऐसा ही होता है जब भी लाइट गुल तों हवा भी गुल, ऐसा प्रतीत होता है के बिजली विभाग और पवन देव में कोई आपसी साठगांठ हो गई है लेकिन ये वो नही जानते के ऐसे समझोते लम्बे समय तक टिक नहीं पाते है..
तभी मेरे कानो मे जोर-जोर से गाड़ियों के होर्न की आवाजे गूंजने लगी थी . मैने बालकनी से झांककर देखा तों नीचे रोड़ पर भारी जाम लग था मैने ट्राफिक के जाम होने...