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हमारी मां(२)
हम तीनों भजन सुनते और गाते बैठ गये।मम्मी को इसमें बहुत आनंद आता था।
बाद में भजन गाने वाली महिला ने अपनी आप बीती सुनाई"कुछ वर्ष पहले उनके पति उन्हें छोड़ कर चले गये थे।वे बहुत उदास रहती थीं।कुछ वर्ष बीत जाने के बाद उन्हें किसी ने बाबा के बारे में बताया।उन्होंने मन्नत मानी लीं।अगर उनके पति घर आ जाएं तो वे भी शिर्डी आएंगीं।
एक दिन घर के सामने कोई साधु ,बाबा के नाम से‌ भिक्षा मांग ।रहा था।उन्होनें बाहर जाकर‌ देखा तो वे उनके पति थे।'आप! महिला ने चौंक‌ कर
पति से पूछा?आपने क्या हालत बना‌ली है अपनी?आइए अंदर।'वे बोले‌'मैं अब साधु बन गया हूं।मेरी नौकरी जाने के तुम्हारी मेहनत और बच्चों की तकलीफ़ मुझसे देखी नहीं जा रही थी।कहीं नौकरी नहीं मिलने के कारण मैं टूट गया था न।एक दिन जब मैं बाहर‌ टहलने तब किसी ने मुझे बाबा का‌ पता दिया।मैं तुम लोगों बताए बगैर वहां‌ चला गया।अब मैं साधु बन‌ गया हूं।अब मैं‌ घर में नही‌ रह सकता।'
नहीं!आप‌ घर पर रह कर‌ भी
साधु जीवन व्यतीत कर सकते हैं।मैं आप का साथ दूंगी,ऐसा कह कर‌ उन्होने
अपने पति को घर‌में रख लिया।तब से वे
दोनों पति-पत्नी यहां आकर अक्सर आठ-दस दिनरहते हैं‌ ।'मैं वहां‌ हैदराबाद में सरकारी स्कूल में‌ टीचर हूं।' इतना‌ सुनते मम्मी बोलीं 'क्या आप टीचर हो?वह भी हैदराबाद‌ में? हांजी कहकर उन्होंने उत्तर दिया।फिर मम्मी बोलीं 'मैं भी हैदराबाद में स्कूल में टीचर हूं।मैं एक मिशन पर निकली हूं।जो मेरे साथ‌हैं, वे मुझे‌ यहां दर्शन करने लगी हैं।'
हम सिख हैं।हम अपने गुरू को ही‌ मानते हैं।दीदी मुझे यहां लेकर आईं हैं,मुझे यहां‌ दर्शन करके भी अच्छा लगा।'अरे आपके सिख लोग तो बाबा को गुरू नानक का अवतार‌ मानते
हैं।' वे बोलीं मम्मी ने कहा'जी मुझे अच्छा तो लग रहा है‌ यहां दर्शन करके।एक दूसरे को अलविदा कह कर हम अलग चलें गये।यहां से आंटी हम लोगों को अपनी बहन के अहमद नगर लेकर गयीं।
(शेष अगले भाग में)