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मैं हिन्दुस्तानी हूं।
मैं एक मुस्लिम परिवार से हूं। मेरे परिवार में मेरी अम्मी हम तीन बहनें और तीन भाई हैं।मेरे अब्बू नहीं हैं। उनकी मौत कैसे हुई अम्मी ने हमें कभी खुलकर नहीं बताया। मेरे तीनों भाई मेरे चाचाओं की तरह बहुत कट्टर मुसलमान हैं। मेरी अम्मी हमेशा डरी सहमी रहती हैं। उन्हें देख कर मेरी दोनों बहनें भी डरी डरी रहती हैं।पर मै उनसे डरती नहीं। शायद इसलिए मेरे भाइयों का रवैया मुझसे बहुत ही खराब रहता है। हमारा घर कश्मीर की खूबसूरत वादियों में है। हम जहां रहते हैं वहां हिन्दू परिवार भी हैं पर मुसलमान परिवार ज़्यादा है। मेरी ज़्यादातर सहेलियां हिन्दू हैं पर मेरे भाइयों के डर से वो हमारे घर नहीं आतीं। मेरे भाई चाहते हैं कि हम बहनें हमेशा बुर्का पहने रहें और दबी आवाज़ में ही बात करे। । पर मुझे ये सही नहीं लगता।जब लड़के आज़ादी से रह सकते हैं तो लड़कियां क्यों नहीं? तभी मेरी एक सहेली कि शादी तय होती है। मुझे उसकी शादी में पहनने के लिए नए कपड़े सिलवाने थे। मैंने अम्मी से पूछा तो उन्होंने मुझे पैसे दे दिए। मैं दर्जी के पास जाने को तैयार हो गई।
मेरे बीच वाले भाईजान ने देखा तो पूछा, 'तू अकेली जाएगी क्या कपड़े सिलवाने?'
' हां तो क्या लड़कियों के कपड़े सिलवाने वाली जगह आप जाएंगे ?'
' मैं चलता हूं साथ अकेले जाने की ज़रूरत नहीं। लड़कियों को अकेले बाहर नहीं जाना चाहिए।'
'भाईजान हम हिन्दुस्तानी हैं तालिबानी नहीं।'
आदत से मजबूर मै उनसे बहस करने लगी।
ज़्यादा ज़ुबान चलाने की जरूरत नहीं। वरना शादी के कपड़ों की जगह कफ़न सिलवाना पड़ेगा।'
अम्मी ने इशारे से चुप रहने को कहा और मै अपने गुस्से को दबाए चुपचाप भाईजान के पीछे चल दी। मैं दर्जी के पास...