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अपना कौन हैं?
स्वागत है आपका मेरे स्टोरी टाउन मे कहानियाँ जिनमे मिलते हैं आप खुद से
ये सवाल सभी के मन में कभी न कभी किसी न किसी इंसान के लिए उठता हैं। सवाल ही ऐसा है।
अर्शि के मन मे भी यही सवाल जगा पर फरक ये था किसी एक के लिए नही सबके लिए २२ साल की होते होते उसने अपनी ज़िंदगी में बहुत कुछ देखा सुना महसूस किया अनुभव किया। कहते हैं जिनसे हमारे खून के रिश्ते होते हैं वो अपने होते है पर अर्शि ने तो कुछ और ही देखा। उसने पाया की अपने ही रिश्तेदार अकसर परायों जैसा व्यवहार करते हैं सिर्फ दिखावे की फिक्र झुटा अपनापन
क्युकी अर्शि ने पापा की बीमारी मे देखा था ये सब। अर्शि अब इन सब से काफी आगे निकल चुकी थी अब वो आगे बढ़ना चाहती थी। बाहर जॉब करना चाहती थी। पर कही न कही दब सी जाती थी रिश्तेदारों के बातों से। अच्छा तो बाहर जॉब करोगी दूसरे शहर मे पता नही कैसा माहौल हो लड़की हो तुम बस इन्ही बातों ने अर्शि को रोक रखा था। फिर एक दिन उसने तय कर लिया और किस्मत ने भी उसका साथ दिया उसे कल लेटर आया बंगलौर सिटी से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट से अच्छी सैलरी भी थी अर्शि इंटर्वीय के लिए गयी salaction हो गया। अब बात थी की अर्शि तो बंगलौर मे ही सेटल हो गयी पर लखनऊ मे उसकी माँ अकेली थी हा थे सब रिश्तेदार पर मतलब के लिए। अर्शि को किसी पर भी भरोसा नही था की कोई माँ का खयाल रखता होगा हजार रिश्तेदारों मे भी कोई अपना कहलाने लायक नही अर्शि ने तय किया की अब वो माँ को भी अपने साथ ही रखे गी । अर्शि माँ को बंगलौर ले आयी अब दोनो माँ बेटी साथ थी घर थोड़ा छोटा था पर सुकून था। कभी कभी दूरियाँ भी अच्छी होती है
बस यही तक थी ये कहानी। अगर कहानी पसंद आये तो लाइक जरूर करे, ऐसी ही और कहानियों के लिए फॉलो करे मुझे

© Vvians( vaishnavi)