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हिंदी हिय
मै हिंदी हू,स्वमं मै पूरी ओर पर्याप्त हू,मेरा कलेवर विस्तृत ओर विशाल है,हर किसी को पूर्णतः समझ मै आऊ ये मेरा स्वभाव है,अर्थात मै तुम्हारे लिये सरल ओर सहज हू,मेरी मॉ संस्कृत है,मै उसके जैसी नही पर गर कोई मेरा गहन अध्यन करे,तो मुझमे मेरी का बहुतायत लक्षण मिलते है,पर आज के दोर मै परेशान हू,क्यूकि मुझे पढ़ने ओर बोलने मै लोग अपनी शान नही समझते,ओर कुछ तो नही,उनसे बस यही कहूगी,तुमने मुझे समझने ओर पढ़ने का मोका ही नही दिया,नही को मैने तुम्हे पढ़ने समझने,लिखने ओर ग्यान अर्जन हेतु बहुत सारा शब्द भंडार दे रखा है, जहॉ पर तुम्हारे लिये एक शब्द के बहुत सारे समानार्थी शब्द मैने दिये है, परंतु इतना सब कुछ देने के बात भी ,तुम मुझे अधूरा ओर तुक्छ समझते हो
मैने तुम्हारे लिये तुम्हारे काव्य की सुंदरता के लिये बहुत सारे अलंकारो,छंदो के प्रकारो,शब्द गुणो, को समाहित किया है ताकी पद्य लेखन को तुम आकर्षक रूप दे सको,ओर गद्य हेतु बहुत सारे मुहावरे और लोकोक्तियो कहावतो को सम्भाल कर रखा है सिर्फ तुम्हारे लिये,
आशा है तुम मुझे पढ़कर और लिखकर आने वाले समय मै विलुप्त होने से बचाओगे,
तुम मुझे एक बार पढ़कर तो देखो,मै तुम्हे भाव पढ़ना ना सिखा दू तो कहना

तुम मुझे एक बार लिखकर तो देखो,तुम्हे आकर्षक ना बना दू कहना

तुम मुझे एक बार सुनकर तो देखो ,प्रेमी ना बना दू को कहना

तुम मुझे एक बार सुनाकर तो देखो,तुम्हे संस्कार ना सिखा दूं तो कहना

मै वो हू, जो गागर मै सागर को भर दे
मै वो हू,जो हर अधूरे को पूरा कर दे
मै वो हू,जिसे मॉ सरस्वती वीणा मै भर दे
मै वो हू,जिसका हर शब्द आश्चर्य कर दे
स्वलिखित राजा आदर्श गर्ग