...

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लेखन जिंदगी है कलम वजूद है मेरा।
मन में उठते भाव सारे,
प्रफुल्लित स्वभाव सारे
बेचैन से हैं मौन अब तक,
मन के वो जज्बात सारे।

लिखती हूं कागज पे अक्सर,
जीवन के अनुभव में खोकर।
कुछ खुशियां कुछ दर्द लिखे,
हंस कर कुछ,कुछ रो रोकर।

दर्द से भी कुछ सीख कर,
किस्मतों से कुछ जीत कर,
अकुला उठी जो पीर से
उस पीर से खुद रीत कर।

चल रही है बेझिझक,
बे हया सी, बे हिचक।
ये जिंदगी अब दर्द में भी,
चल रही है अनवरत।

न किसी से अब गिला है
न कोई है उलझनें।
जिंदगी ने वार दी हैं,
जिंदगी पर मुश्किलें।

न कोई अपना सा लगता
न किसी का है सहारा।
न किसी सपने की परवाह,
न किया किसी से किनारा।

न मौत से अब डर रहा
न जिंदगी की चाह है।
न अपनों से उम्मीद कोई
न ही गैरों की परवाह है।

लेखनी बस हाथ लेकर
जिंदगी को लिख रही हूं।
देकर लकीरों को चुनौती,
वजूद अपना गढ़ रही हूं।

© रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"