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वी. सी. आर.....
वी. सी. आर...
आज सामने वाली धर्मशाला में बारात रुकेगी.. चौक में रात को वी. सी. आर चलेगा जर्रू भागता नाचता फैंफू, रुक्शया और टेणु कै पास आया.. वे तीनो भी खुश होकर नाचने लगे... उदेश भी वहीं बड के चबूतरे पर बैठा सुन रहा था हल्की मुस्कान लिये सोच रहा था..कितना अच्छा हो की बाऊजी आज मुझे भी इन सब के साथ वीसीआर देखने भेज दे.. कोई दूर भी नहीं है सामने ही तो है चौक,, पर मुश्किल है बाउजी तो पडोसियो के टीवी भी नहीं देखने देतै.. वो भी गर्मी की छुट्टुयों में नानी के जाते हैं तब ही देखने मिलता है,वो कोनसी पिक्चर थी.. हां ताकत.. अरे कितनी जोरदार फाईट थी ढिशुम ढिशुम.. ये सोचते सोचते उदेश के हाथ चलने लगे.. अरे उदेश तू भी आना रात को चौक में.. शायद नयी नयी पिचरे आयेगी फैंफू बोला...भौमली , गंगा जमुना । उधर से जर्रू गाने लगा... ये आदमी क्या होत.. त.. ता.. हह, उदेश सोच रहा था इनको गाना भी याद है ये तो जब भी धर्मशाला में बारात रुकती है वी सी आर चलता है तो इनके बाऊजी भेज देते है.. सारी रात पिचरे देखतै हैं, मेरे बाऊजी क्यू नहीं भेजते.. आज मां को कंहू क्या.. वो बोलेगी तो एक घंटा भेज दे शायद।
घर पर सोने की तैयारीयां हो रही थी.. मां गूदडे बिछा रही थी और बाऊजी खाट पर बैठ दादी से बतला रहे थे।
मां.. आज चौक में जाने दो ना मैं भी पिच्चर देखूं.. एक ही देखुंगा.. धो जर्रू ,फैफू तो हमेशा पूरी रात देखते है ..आप बाऊजी को बोलो ना उदेश मां को मनाने लगा।
बाऊजी से मां की ऐसे मामलो में कहने की हिम्मत नहीं थी फिर भी मां तो मां होती हैं "आ.. ज अपने उदेश को भी जाने दो ना.. चौक में वी. सी. आर आया हैं सब बच्चै देखतै है.. एक घंटा जा आयेगा ये भी.. बच्चा है इच्छा तो करती है ..और बच्चो की तरह जिद्दी भी नहीं है क्या होगा जो एक दिन वीसीआर देख लेगा.. ये तो पडोसियो के टीवी भी नहीं देखता.. मां की सिफारिश सुन उदेश के पिता जी भडक गये.. तुम चुपचाप सो जाओ और इसे भी सुला दो.. मुझे सब पता है क्या दिखाना है और क्या नही.. बेटा है मेरा भी।
उदेश रोते रोते मां से चिपक गया ..सब सो गये मां भी.. उदेश नहीं सोया.. वीसीआर की आवाज घर तक आ रही थी शायद पिच्चर में फाईट.... मेरे बाऊजी खराब है... उदेश का एकदम से ध्यान भंग हुआ... सामने उसका आठ साल का बैटा रोता हुआ कह रहा था "मेरे पापा खराब है.. सबके अच्छे हैं.. वो मेरेदोस्तों के पापा तो मोबाईल पर गैम भी खेलने देते हैं,...मुझे तो टीवी भी नहीं.. बस गर्मी की छुट्टीयो में देखने मिलता हैं ,,बेटा रोये जा रहा था और उदेश देखे जा रहा था कभी भूतकाल में खुद को कभी वर्तमान में अपने बेटे को...इतने में ऊषा उदेश की पत्नि बोली ..क्यू लाक कर देतै हो टीवी.. इतना बडा टीवी क्या सजाने के लिये खरीदा है.. बच्चा है अब एक घंटे तो देख लेने दिया करो इसको क्या बिगड जायेगा।
तुम चुप रहो.. मैरा बेटा है मे सब जानता हूँ.. क्या दि.खा..ना है और क्या नही तुम इसे सुलेख करा लो..

मुकेश कुमार कुमावत। 07.06.20