सिया स्वयंवर निज गुण गान ✍🏻✍🏻✍🏻
भया आगमन राम लला का सिया स्वयंवर के दरबार !
लख लख राजा आकर बैठे कुछ आ बैठे राजकुमार !
जनक नंदिनी आसन बैठी रही बिलोकि स्वयंबर हाल !
एक एक आवै आकर जावै पाएं धनुष तिनको न टार !
शर्त करें केहि बीति सब पूरी, सिया लक्ष्मी मातु समान !
भीड़ छंट रही जैसे जैसे जनक राज विह्वल हुई जाय !
धनुष पिनाक उठा कर तोरे कउनो आर्यावर्त मा नाय !
परिचय विश्वामित्र कराये पुलकित सभा करे सम्मान !
पीछे अनुज महीपति तिनके अग्रज जिनके हैं श्रीराम !
जनक के दुःख को देख के ठाढ़स खुद दे रही सुनयना मात !
विश्वामित्र चले तब सम्मुख अरु बोले मेरे प्रिय रघुनाथ !
धनुष उठाओ धर्म निभाओ नियति तुमको रही पुकार !
हसी ख़ुशी तुम धनुआ टूरो ख़तम करो बिरथा की रार !
मातु सुनयना देख रही सब निज मन अचरज भरा अपार !
जो न कर पाया दसकंधर, सो कस करिहै राजकुमार !
रघुनन्दन तब स्वपग बढाए काँप उठा सिगरा आकाश !
नेत्र सुलोचन मूँद लिए और कीन्हा महादेव का ध्यान !
लाज हमारी रखना प्रभुवर, लीन्हा मानुष का अवतार !
बाए हाथ से टोह धनुष की लीन्ही सब सुख गुण के धाम !
अगले छन तंह धनुष उठाये तान दिए जैसे असमान !
देख के लीला लीलाधर की सिगरी सभा धन्य हुई जाय !
पुलकित भाव विभोर हुए तब जनक दंपति आगे आए !
राम की लीला राम ही जानें प्रेम सहित सर दिए नवाय !
जनक दम्पति आशीष दीन्हि जनक लिहिन तब कंठ लगाय
सिया नेत्र जल जलधि सरीखा, प्रेम भाव न बरना जाए !
राम की लीला राम ही जाने सिया स्वयंबर भा सकुलाय !
जो बनि पाया सो लिखधाया राम कथा लेकर आधार !
पढ़ो पढ़ाओ सुनो सुनाओ सबका कोटि कोटि आभार
© VIKSMARTY _VIKAS✍🏻✍🏻✍🏻
लख लख राजा आकर बैठे कुछ आ बैठे राजकुमार !
जनक नंदिनी आसन बैठी रही बिलोकि स्वयंबर हाल !
एक एक आवै आकर जावै पाएं धनुष तिनको न टार !
शर्त करें केहि बीति सब पूरी, सिया लक्ष्मी मातु समान !
भीड़ छंट रही जैसे जैसे जनक राज विह्वल हुई जाय !
धनुष पिनाक उठा कर तोरे कउनो आर्यावर्त मा नाय !
परिचय विश्वामित्र कराये पुलकित सभा करे सम्मान !
पीछे अनुज महीपति तिनके अग्रज जिनके हैं श्रीराम !
जनक के दुःख को देख के ठाढ़स खुद दे रही सुनयना मात !
विश्वामित्र चले तब सम्मुख अरु बोले मेरे प्रिय रघुनाथ !
धनुष उठाओ धर्म निभाओ नियति तुमको रही पुकार !
हसी ख़ुशी तुम धनुआ टूरो ख़तम करो बिरथा की रार !
मातु सुनयना देख रही सब निज मन अचरज भरा अपार !
जो न कर पाया दसकंधर, सो कस करिहै राजकुमार !
रघुनन्दन तब स्वपग बढाए काँप उठा सिगरा आकाश !
नेत्र सुलोचन मूँद लिए और कीन्हा महादेव का ध्यान !
लाज हमारी रखना प्रभुवर, लीन्हा मानुष का अवतार !
बाए हाथ से टोह धनुष की लीन्ही सब सुख गुण के धाम !
अगले छन तंह धनुष उठाये तान दिए जैसे असमान !
देख के लीला लीलाधर की सिगरी सभा धन्य हुई जाय !
पुलकित भाव विभोर हुए तब जनक दंपति आगे आए !
राम की लीला राम ही जानें प्रेम सहित सर दिए नवाय !
जनक दम्पति आशीष दीन्हि जनक लिहिन तब कंठ लगाय
सिया नेत्र जल जलधि सरीखा, प्रेम भाव न बरना जाए !
राम की लीला राम ही जाने सिया स्वयंबर भा सकुलाय !
जो बनि पाया सो लिखधाया राम कथा लेकर आधार !
पढ़ो पढ़ाओ सुनो सुनाओ सबका कोटि कोटि आभार
© VIKSMARTY _VIKAS✍🏻✍🏻✍🏻