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बस ऐसे ही।
आजकल की भागदौड़ की दुनिया में प्रकृति को निहारने का वक्त नहीं मिलता और वैसे भी बड़ी-बड़ी अट्टलिकाओं के बीच सूरज, चांद, तारे ,कहीं गुम हो जाते हैं। ऐसा शायद ही हो पाता है कि हम इन्हें सही ढंग से, प्रतिदिन देख पाते हो। बड़ी-बड़ी मिनारें आसमान को भी घेर लेती है। इन सबके दर्शन के लिए मैं ,शायद ही कभी छुटती हो, इन नजारों के लिए छत पर जातीं हूं। पक्षियों की घर वापसी ,अस्त होता सूरज, मध्यम से तेज होती चांद की रोशनी, थोड़ी मोड़े तारों की टिम टिमाहट, कुछ एक दो घंटे हल्की धूप से शाम तक, या कहे हल्की रात तक, जहां मैं होती हूं और यह कायनात होती है। प्रकृति की मनोहर छटा कितनी सुखद है, सुंदर है देख पाती हूं।जब मैं छोटी थी तो हमेशा से प्राकृतिक आवरण के सानिध्य में रही थी। बड़ा सुखद सुंदर आवरण होता था, पर तब भी यह शहर ज्यादा आकर्षित करता था ।पर अजब यह है कि शहर में रहती हूं तो गांव की यादें हैं। मैंने जिंदगी से बस इतना ही जाना है कि हमारे पास जो होती है ,हम उनके साथ संतुष्ट नहीं होते और यह समझ मुझे बहुत बाद में आई ।ऐसे ही कई यादें हैं बचपन की। जब मैं छोटी-छोटी बातों पर प्रिडिक्शन किया करती थी आज अचानक से मेरे साथ ऐसी घटना, फिर से घटी आइए बताती हूं ।क्या हुआ ,बात हुई यूं की:-

हममें से कईयों ने शायद ऐसा किया भी होगा
आज शाम जब मैं छत पर टहल रही थी
मेरी नजर अचानक से एक मैने (पक्षी )पर पड़ी। यह समीप के मकान के ऊंचे टंकी पर बैठी हुई थी ।पता नहीं क्यों ,मुझे ऐसा लगा कि क्यों ना मैं इससे अपनी किस्मत को जोड़ कर देखूं और मैंने मन ही मन कल्पना की, कि काश यह मैना मुझे जोड़े में दिख जाए ।शाम काफी हो चुकी थी और मुझे नीचे ,घर में भी जाना था तो मैने इसे अपनी किस्मत से जांचना चाहा। मैंने मन ही मन यह कल्पना की कि अगर ये मैना मुझे जोड़े में दिख जाएगी तो दिल में जो इच्छा रखती हूं वह पूरा हो जाएगी। मैं लगातार उसे देखती रही, अचानक से वह उड़कर समीप के दूसरे मकान के छत पर चली गई। मैं चुकी , चौथी मंजिल से देख रही थी वो नीचे मेरे ,आंखों से ओझल हो गई। थोड़ी देर के लिए मुझे अपनी सोच पर हंसी आ रही थी पर अचानक फिर से ऐसा हुआ कि वह मैना एक और मैने के साथ आकर फिर उसी जगह पर जा करके बैठ गई। मैं पूरी तरह से स्तब्ध थी। ऐसा लगा जैसे उसने मेरी मन की बातें सुन ली हो। हां यह संयोग हो सकता है पर ऐसा लगा जैसे वह कहीं से उसे बुला करके लाई और उसके साथ फिर उसी जगह पर बैठ गई जहां मैं उसे देखना चाह रही थी। संयोग था पर बहुत सुखद था ।ऐसी ,कितनी छोटी छोटी खुशियां हम चाहे तो अपनी जिंदगी में बटोर कर ला सकते हैं ।जरूरत ही क्या है ,बड़े होने की दिल से बच्चे ही रहते हैं ना। अच्छा महसूस होगा।

है सवाल कई तुमसे
जिंदगी, जवाब भी तुमसे ही
कल तलक दिल में थें
बात जो ,तुमसे ही
भीड़ में, जज्बात के
मैं अकेली थी खड़ी
थे कल तलक जो सवाल तुमसे
वह जवाब मुझमें ही।



© geetanjali