आदि पर्व ( महाभारत )।।।
महाभारत की अठारह ग्रंथ है जिनमे हर ग्रंथ हर एक पर्व पर वर्णित है। आदि का अर्थ है आरंभ । महाभारत के अठारह पर्वो में पहला पर्व आदि पर्व है। इसमें बताया है कि किस प्रकार उग्रसरवा सौती ने नैमिष वन में आए अनेक ऋषियों को उपदेश दिया , और जन्मेजाय ( अभिमन्यु का पोत्र व परीक्षित पुत्र) के बारे में बताया है।आदि पर्व के १९ उप - पर्व है।
१) अनुक्रमानिका पर्व -
२) संग्रह पर्व
३) पौष्य पर्व
४)पौलोमा पर्व
५) आस्तिक पर्व
६) आदि - वनसतरवा पर्व
७) संभवा पर्व
८) जतुगृहादहा पर्व
९) हिडिमवा-वध पर्व
१०) वाका - वध पर्व
११)चैत्र - रथा पर्व
१२)स्वयंवर पर्व
१३)वैवाहिक पर्व
१४)विदुरागमन पर्व
१५)राज्यसभा पर्व
१६)अर्जुन वनवास पर्व
१७)सुभद्रा - हरण पर्व
१८) हरण- हरिका पर्व
१९)खांडव दहन पर्व
आदि पर्व के यह १९ उप -पर्व है। आदि पर्व स्वयं एक किताब है । इस कहानी में सिर्फ कुछ - कुछ तथ्य का वर्णन करूंगा।
आदि पर्व में बताया है कि जब देवता और राक्षसों में युद्ध आरंभ हुआ । समुद्र मंथन कर दोनो पक्ष में काटे की टक्कर थी । जहा विश निकलते ही भगवान शिव ने ग्रहण कर लिया । उसके बाद सहत्रो कई लाख वर्षों तक मंथन होते होते ही अमृत निकला जिसे सहसा देव धन्वंतरि जिन्हें आयुर्वेद के देवता कहा जाता है , उन्होंने उसे ले भाग चले वहीं राक्षस उनका पीछा करते करते उनसे वह अमृत कलश छीन लिया । यह देख भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर राक्षस व संसार में सुशोभित हुए । उन्होंने देवताओं को अमृत पिलाया जो धोखे से रक्षासो से छीन लिया और राक्षसों को मदिरा पीला उन्हें निद्रा विलीन कर दिया। परन्तु राहु नामक राक्षस धोखे से देवता रूप धारण कर अमृत पी लिया जिसके कारण वह अमर हो गया था । उसने जैसे ही यह बात श्री विष्णु से कहा तुरंत भगवान विष्णु ने उसका गर्दन अपने चक्र से काट डाला। परंतु वह अमृत धारण कर चुका था जिसके वजह से...
१) अनुक्रमानिका पर्व -
२) संग्रह पर्व
३) पौष्य पर्व
४)पौलोमा पर्व
५) आस्तिक पर्व
६) आदि - वनसतरवा पर्व
७) संभवा पर्व
८) जतुगृहादहा पर्व
९) हिडिमवा-वध पर्व
१०) वाका - वध पर्व
११)चैत्र - रथा पर्व
१२)स्वयंवर पर्व
१३)वैवाहिक पर्व
१४)विदुरागमन पर्व
१५)राज्यसभा पर्व
१६)अर्जुन वनवास पर्व
१७)सुभद्रा - हरण पर्व
१८) हरण- हरिका पर्व
१९)खांडव दहन पर्व
आदि पर्व के यह १९ उप -पर्व है। आदि पर्व स्वयं एक किताब है । इस कहानी में सिर्फ कुछ - कुछ तथ्य का वर्णन करूंगा।
आदि पर्व में बताया है कि जब देवता और राक्षसों में युद्ध आरंभ हुआ । समुद्र मंथन कर दोनो पक्ष में काटे की टक्कर थी । जहा विश निकलते ही भगवान शिव ने ग्रहण कर लिया । उसके बाद सहत्रो कई लाख वर्षों तक मंथन होते होते ही अमृत निकला जिसे सहसा देव धन्वंतरि जिन्हें आयुर्वेद के देवता कहा जाता है , उन्होंने उसे ले भाग चले वहीं राक्षस उनका पीछा करते करते उनसे वह अमृत कलश छीन लिया । यह देख भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर राक्षस व संसार में सुशोभित हुए । उन्होंने देवताओं को अमृत पिलाया जो धोखे से रक्षासो से छीन लिया और राक्षसों को मदिरा पीला उन्हें निद्रा विलीन कर दिया। परन्तु राहु नामक राक्षस धोखे से देवता रूप धारण कर अमृत पी लिया जिसके कारण वह अमर हो गया था । उसने जैसे ही यह बात श्री विष्णु से कहा तुरंत भगवान विष्णु ने उसका गर्दन अपने चक्र से काट डाला। परंतु वह अमृत धारण कर चुका था जिसके वजह से...