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shanti

*कहानी #1: शांति की खोज*

एक राजा था, जिसे चित्रकला से बहुत प्रेम था। एक बार उसने घोषणा की कि *जो कोई भी चित्रकार उसे एक ऐसा चित्र बना कर देगा जो शांति को दर्शाता हो तो वह उसे मुँह माँगा पुरस्कार देगा।*

निर्णय वाले दिन एक से बढ़ कर एक चित्रकार पुरस्कार जीतने की लालसा से अपने अपने चित्र लेकर राजा के महल पहुँचे। राजा ने एक एक करके सभी चित्रों को देखा और उनमें से दो चित्रों को अलग रखवा दिया। अब इन्ही दोनों में से एक को पुरस्कार के लिए चुना जाना था।
पहला चित्र एक अति सुंदर शांत झील का था। *उस झील का पानी इतना स्वच्छ था कि उसके अंदर की सतह तक दिखाई दे रही थी और उसके आस-पास विद्यमान हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी मानो कोई दर्पण रखा हो। ऊपर की ओर नीला आसमान था जिसमें रुई के गोलों के सामान सफ़ेद बादल तैर रहे थे।* जो कोई भी इस चित्र को देखता उसको यही लगता कि शांति को दर्शाने के लिए इससे अच्छा कोई चित्र हो ही नहीं सकता। वास्तव में यही शांति का एक मात्र प्रतीक है।
दूसरे चित्र में भी *पहाड़ थे, परंतु वे बिलकुल सूखे, बेजान, वीरान थे और इन पहाड़ों के ऊपर घने गरजते बादल थे जिनमें बिजलियाँ चमक रहीं थी। घनघोर वर्षा होने से नदी उफान पर थी। तेज हवाओं से पेड़ हिल रहे थे और पहाड़ी के एक ओर स्थित झरने ने रौद्र रूप धारण कर रखा था।* जो कोई भी इस चित्र को देखता यही सोचता कि भला इसका शांति से क्या लेना देना? इसमें तो बस अशांति ही अशांति है।
सभी आश्वस्त थे कि पहले चित्र बनाने वाले चित्रकार को ही पुरस्कार मिलेगा। तभी राजा अपने सिंहासन से उठे और घोषणा की कि दूसरा चित्र बनाने वाले चित्रकार को वह मुँह माँगा पुरस्कार देंगे। हर कोई आश्चर्य में था! पहले चित्रकार से रहा नहीं गया। वह बोला *लेकिन महाराज उस चित्र में ऐसा क्या है जो आपने उसे पुरस्कार देने का फैसला लिया? जबकि हर कोई यही कह रहा है कि मेरा चित्र ही शांति को दर्शाने के लिए सर्वश्रेष्ठ है!*

*आओ मेरे साथ!* राजा ने पहले चित्रकार को अपने साथ चलने के लिए कहा। दूसरे चित्र के समक्ष पहुँच कर राजा बोले *झरने के बायीं ओर हवा से एक ओर झुके इस वृक्ष को देखो। उसकी डाली पर बने उस घोंसले को देखो! देखो कैसे एक चिड़िया इतनी कोमलता से, इतने शांत भाव व प्रेमपूर्वक अपने बच्चों को भोजन करा रही है!*
फिर राजा ने वहाँ उपस्थित सभी लोगों को समझाया *शांत होने का अर्थ यह नहीं है कि आप ऐसी स्थिति में हों जहाँ कोई शोर नहीं, कोई समस्या नहीं हो, जहाँ कड़ी मेहनत नहीं हो, जहाँ आपकी परीक्षा नहीं हो। शांत होने का सही अर्थ है कि आप हर तरह की अव्यवस्था, अशांति, अराजकता के बीच हों और फिर भी आप शांत रहें, अपने काम पर केंद्रित रहे और अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहें।*
अब सभी समझ चुके थे कि दूसरे चित्र को राजा ने क्यों चुना है।
*मित्रों, हर कोई अपने जीवन में शांति चाहता है। परंतु प्राय: हम शांति को कोई बाहरी वस्तु समझ लेते हैं और उसे दूरस्थ स्थलों में ढूँढते हैं, जबकि शांति पूरी तरह से हमारे मन की भीतरी चेतना है और सत्य यही है कि सभी दुःख-दर्दों, कष्टों और कठिनाइयों के बीच भी शांत रहना ही वास्तव





🪷 _ 🪷 _ 🪷 _ 🪷 _ 🪷 _ 🪷 _ 🪷

*➡️➡️विकारो▫️के▪️पांच▫️गधे⬅️⬅️*

एक महात्मा कहीं जा रहे थे। रास्ते में वो आराम करने के लिये रुके। एक पेड के नीचे लेट कर सो गये नींद में उन्होंने एक स्वप्न देखा कि *वे रास्ते में जा रहे हैं ,और उन्हें एक व्यापारी मिला, जो पांच गधों पर बड़ी- बड़ी गठरियां लादे हुए जा रहा था। गठरियां बहुत भारी थीं, जिसे गधे बड़ी मुश्किल से ढो पा रहे थे।*
साधु ने व्यापारी से प्रश्न किया *इन गठरियों में तुमने ऐसी कौन-सी चीजें रखी हैं, जिन्हें ये बेचारे गधे ढो नहीं पा रहे हैं?*
व्यापारी ने जवाब दिया *इनमें इंसान के इस्तेमाल की चीजें भरी हैं। उन्हें बेचने मैं बाजार जा रहा हूं।*
साधु ने पूछा *अच्छा! कौन-कौन सी चीजें हैं, जरा मैं भी तो जानूं!*
व्यापारी ने कहा *यह जो पहला गधा आप देख रहे हैं इस पर अत्याचार की गठरी लदी है।*
साधु ने पूछा *भला अत्याचार कौन खरीदेगा?*
व्यापारी ने कहा *इसके खरीदार हैं राजा महाराजा और सत्ताधारी लोग। काफी ऊंची दर पर बिक्री होती है इसकी।*
साधु ने पूछा *इस दूसरी गठरी में क्या है?*
व्यापारी बोला *यह गठरी अहंकार से लबालब भरी है और इसके खरीदार हैं विद्वान। तीसरे गधे पर ईर्ष्या की गठरी लदी है और इसके ग्राहक हैं वे धनवान लोग, जो एक दूसरे की प्रगति को बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसे खरीदने के लिए तो लोगों का तांता लगा रहता है।*
साधु ने पूछा *अच्छा! चौथी गठरी में क्या है भाई?*
व्यापारी ने कहा *इसमें बेईमानी भरी है और इसके ग्राहक हैं वे कारोबारी, जो बाजार में धोखे से की गई बिक्री से काफी फायदा उठाते हैं। इसलिए